स्तनौ मांसग्रन्थी /stanau mansa granthi shloka vairagya
स्तनौ मांसग्रन्थी कनककलशावित्युपमितौ
मुखं श्लेष्मागारं तदपि च शशाङ्केन तुलितम्।
स्रवन्मूत्रक्लिन्नं करिवरकरस्पर्धिजघनमधो
निन्द्यं रूपं कविजनविशेषैर्गुरूकृतम्॥१९॥
मांस के लोथड़ेरूप स्तनों को सुवर्ण के कलशों की उपमा दी, खखार और थूक के पात्र मुख की चन्द्रमा से तुलना की, टपकते हुए मूत्र से भीगी जंघा को गजेन्द्र के सूंड की उपमा दी, इस तरह निंद्य भी स्त्रियों के रूप को कवियों ने कैसा बढ़ाकर कहा, आश्चर्य है!