विद्या नाधिगता /vidya nadhigata shloka vairagya
विद्या नाधिगता कलङ्करहिता वित्तं च नोपार्जितं
सुश्रूषापि समाहितेन मनसा पिर्लोन सम्पादिताः।
आलोलायतलोचना युवतयः स्वप्जेऽसि नालिङ्गिताः
कालोऽयं परपिण्डलोलुपतया काकैरिव प्रेर्यते॥४३॥
न तो हमने निष्कलंक विद्या पढ़ी, न धन ही कमाया, न तो माता-पिता की सेवा ही की, और न स्वप्न में भी चंचललोचना सुन्दरी का आलिंगन किया। हमने तो कौओं की भाँति दूसरों द्वारा दिए गये पिण्ड की लोलुपता में ही समय बिता दिया।