वितीर्णे सर्वस्वे /vitirne sarvasya shloka vairagya
वितीर्णे सर्वस्वे तरुणकरुणपूर्णहृदयाः
सारन्तः संसारे विगुणापरिणामां विधिगतिम्।
वयं पुण्यारण्ये परिणतशरच्चन्द्रकिरणास्त्रियामा
नेष्यामो हरचरणचिन्तैकशरणाः॥४४॥
अपना सर्वस्व याचकों को बाँटकर करुणापूर्ण हृदय होकर और संसार में विषय परिणाम वाली दैवगति को स्मरण करते हुए हम पवित्र तपोवन में भगवान् शंकर के चरणों की शरण लेकर शरद् ऋतु की चाँदनी रात कब व्यतीत करेंगे।