विवेकव्याकोशे /viveka vyakoshe shloka vairagya
विवेकव्याकोशे विदधतिशमे शाम्यति तृषा
परिष्वंगे तुङ्गे प्रसरतितरां सा परिणतिः।
जराजीणैश्वयग्रसनगहनाक्षेपकृपणस्तृषापात्रं
यस्यां भवति मरुतामप्यधिपतिः॥१७॥
विवेक के उत्पन्न होने से शान्ति का उदय होता है, जिससे तृष्णा शान्त होती है और यदि उसको लिपटाया तो वह बढ़ती ही जाती है। वृद्धावस्था में जो विषयासक्ति होती है, उसको इन्द्र भी नहीं रोक सकता और वह भी इसी तृष्णा का पात्र बनता है।