येनैवाम्बरखण्डेन /yenaivambar khandena shloka vairagya
येनैवाम्बरखण्डेन संवीतो निशि चन्द्रमाः।
तेनैव च दिवा भानुरहो दौर्गत्यमेतयोः॥१५॥
चन्द्रमा जिस आकाशरूपी वस्त्र से अपने को रात्रि में ढंकता है, सूर्य भी उसी से अपने को दिन में ढंकता है। आश्चर्य है कि संसार को प्रकाश देने वाले इनको भी दूसरे के सामने दीन होना ही पड़ता
है।