F जन्माद्यस्य यतोऽन्वया /janmadyasya shloka - bhagwat kathanak
जन्माद्यस्य यतोऽन्वया /janmadyasya shloka

bhagwat katha sikhe

जन्माद्यस्य यतोऽन्वया /janmadyasya shloka

जन्माद्यस्य यतोऽन्वया /janmadyasya shloka

 जन्माद्यस्य यतोऽन्वया /janmadyasya shloka

जन्माद्यस्य यतोऽन्वया /janmadyasya shloka

जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट

तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरयः ।

तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा

धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि॥६॥

अन्वयव्यतिरेकसे जो जगत्की सृष्टि, स्थिति और प्रलयके कारण सिद्ध हैं, सर्वज्ञ हैं, स्वप्रकाश हैं, जिन्होंने आदिपुरुष ब्रह्माको वेदोपदेश दिया, जिनको जाननेमें विद्वान् भी मोहित हो रहे हैं, जिनके सकाशसे पृथ्वी, जल और तेजोमय संसार सत्य-सा दीख पड़ता है, ऐसे अपने तेजसे अज्ञानको नाश करनेवाले परमार्थ सत्य परमेश्वरका हम ध्यान करते हैं ॥ ६॥ 

 जन्माद्यस्य यतोऽन्वया /janmadyasya shloka


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