F जपो जल्पः शिल्पं /jalo jalpa shilpam shloka - bhagwat kathanak
जपो जल्पः शिल्पं /jalo jalpa shilpam shloka

bhagwat katha sikhe

जपो जल्पः शिल्पं /jalo jalpa shilpam shloka

जपो जल्पः शिल्पं /jalo jalpa shilpam shloka

 जपो जल्पः शिल्पं /jalo jalpa shilpam shloka

जपो जल्पः शिल्पं /jalo jalpa shilpam shloka

जपो जल्पः शिल्पं सकलमपि मुद्राविरचना

गतिः प्रादक्षिण्यक्रमणमदनान्याहुतविधिः।

प्रणामः संवेश: सकलमिदमात्मार्पणविधौ

सपर्यापर्यायस्तव भवतु यन्मे विलसितम्॥१३६॥

हे भगवन् ! मेरा बोलना आपका जप हो, सब प्रकारकी शिल्प (हाथकी कारीगरी) मुद्रा रचना हो, चलना-फिरना प्रदक्षिणा हो; भोजन करना हवनक्रिया हो और शयन करना प्रणाम हो; इस प्रकार मेरी सभी चेष्टाएँ आत्मार्पणविधिमें आपकी पूजारूप ही हों॥ १३६ ॥

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 जपो जल्पः शिल्पं /jalo jalpa shilpam shloka


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