जपो जल्पः शिल्पं /jalo jalpa shilpam shloka
जपो जल्पः शिल्पं सकलमपि मुद्राविरचना
गतिः प्रादक्षिण्यक्रमणमदनान्याहुतविधिः।
प्रणामः संवेश: सकलमिदमात्मार्पणविधौ
सपर्यापर्यायस्तव भवतु यन्मे विलसितम्॥१३६॥
हे भगवन् ! मेरा बोलना आपका जप हो, सब प्रकारकी शिल्प (हाथकी कारीगरी) मुद्रा रचना हो, चलना-फिरना प्रदक्षिणा हो; भोजन करना हवनक्रिया हो और शयन करना प्रणाम हो; इस प्रकार मेरी सभी चेष्टाएँ आत्मार्पणविधिमें आपकी पूजारूप ही हों॥ १३६ ॥