कदा द्वैतं पश्यन्न /kada dyetam pashyan shloka
कदा द्वैतं पश्यन्नखिलमपि सत्यं शिवमयं
महावाक्यार्थानामवगतसमभ्यासवशतः।
गतद्वैताभावः शिव शिव शिवेत्येव विलपन्
मुनिर्न व्यामोहं भजति गुरुदीक्षाक्षततमाः॥ ८ ॥
महावाक्योंके तात्पर्यार्थके अभ्यासद्वारा सारे संसारको सत्य और शिवरूप समझता हुआ, अद्वैततत्त्वज्ञाता होकर शिव-शिव-शिव इस प्रकार रटता हुआ मुनि, किस समय गुरुदीक्षासे अज्ञानरहित होकर, व्यामोहमें न फँसेगा? ॥ ८॥