मधुमर्दि महन्मञ्जु /madhu mardi mahanmanju shloka
मधुमर्दि महन्मञ्जु मन्द्यं मतिमतामहम्।
मन्येऽमलमदोऽमन्दमहिम श्यामलं महः ।।६३॥
मतिमान् महात्माओंके वन्दनीय, मधुदैत्यका मर्दन करनेवाले, महनीय, मनोहर और उत्कृष्ट महिमाशाली निर्मल श्यामल तेजको ही मैं अपना आराध्यदेव मानता हूँ॥ ६३॥