विपदो नैव विपदः /vipdo naiva vipadah shloka
विपदो नैव विपदः सम्पदो नैव सम्पदः।
विपद्विस्मरणं विष्णो: सम्पन्नारायणस्मृतिः।। ६२ ।।
विपत्ति सच्ची विपत्ति नहीं है और सम्पत्ति भी सच्ची सम्पत्ति नहीं है, अपितु, विष्णुका विस्मरण ही विपत्ति है और नारायणका स्मरण ही सम्पत्ति है॥ ६२॥