F मूर्द्धप्रोद्भासिगङ्गेक्षण /murdha prodbhasi gangechhada shloka - bhagwat kathanak
मूर्द्धप्रोद्भासिगङ्गेक्षण /murdha prodbhasi gangechhada shloka

bhagwat katha sikhe

मूर्द्धप्रोद्भासिगङ्गेक्षण /murdha prodbhasi gangechhada shloka

मूर्द्धप्रोद्भासिगङ्गेक्षण /murdha prodbhasi gangechhada shloka

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मूर्द्धप्रोद्भासिगङ्गेक्षण /murdha prodbhasi gangechhada shloka

मूर्द्धप्रोद्भासिगङ्गेक्षणगिरितनयादुःखनिःश्वासपात-

स्फायन्मालिन्यरेखाछविरिव गरलं राजते यस्य कण्ठे।

सोऽयं कारुण्यसिन्धुः सुरवरमुनिभिः स्तूयमानो वरेण्यो

नित्यं पायादपायात्सततशिवकरः शङ्करः किङ्करं माम्॥४॥

मस्तकपर सुशोभित हुई गङ्गाजीको देखकर पार्वतीजीका शोकोच्छ्वास पड़नेके कारण बढ़े हुए मालिन्यकी श्यामल रेखाके समान मानो जिनके कण्ठमें गरल-चिह्न शोभित हो रहा है,बड़े-बड़े देवता और मुनि जिनकी स्तुति करते हैं, जो पूजनीय तथा सदैव कल्याण करनेवाले हैं वे दयासागर शंकर मुझ दासको नाशसे बचावें॥ ४॥ 

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