न नाकपृष्ठं न च पारमेष्ठ्यं /na nakprishtham shloka
न नाकपृष्ठं न च पारमेष्ठ्यं न सार्वभौमं न रसाधिपत्यम्।
न योगसिद्धीरपुनर्भवं वा समञ्जस त्वा विरहय्य काझे ॥२॥
हे समदर्शिन् ! आपको छोड़कर मुझे न तो स्वर्गकी, न ब्रह्मलोककी, न सार्वभौम साम्राज्यकी, न पृथ्वीपतित्वकी, न योगसिद्धियोंकी और न जन्म-मरणसे छूटनेकी ही इच्छा है ॥ २॥