अजातपक्षा इव मातरं खगाः /ajat paksha shloka
अजातपक्षा इव मातरं खगाः स्तन्यं यथा वत्सतराः क्षुधार्ताः।
प्रियं प्रियेव व्युषितं विषण्णा मनोऽरविन्दाक्ष दिदृक्षते त्वाम्॥३॥
बिना पङ्खोंवाले पक्षिशावक जिस प्रकार अपनी माताके लिये उत्सुक रहते हैं, भूखे बछड़े जैसे दूधके लिये व्याकुल रहते हैं तथा विरहिणी स्त्री जैसे व्यथित होकर अपने प्रवासी पतिकी बाट देखती है; हे कमलनयन ! मेरा मन भी उसी प्रकार आपके दर्शनोंके लिये लालायित हो रहा है ॥ ३॥