यन्मूर्ध्नि मे श्रुतिशिरस्सु /yanmurdhni me shloka
यन्मूर्ध्नि मे श्रुतिशिरस्सु भाति यस्मि-
न्नस्मन्मनोरथपथः सकलः समेति।
स्तोष्यामि नः कुलधनं कुलदैवतं तत्
पादारविन्दमरविन्दविलोचनस्य ।।४।।
कमलनयन भगवान् विष्णुके जो चरणारविन्द मेरे मस्तकपर तथा वेदोंके शिरपर सुशोभित होते हैं और जिनमें मेरे मनोरथोंके सभी मार्ग मिलते हैं तथा जो मेरे कुलधन और कुलदेवता हैं, उनकी मैं वन्दना करता हूँ ॥ ४॥