तत्त्वेन यस्य महिमार्ण /tatvena yasya mahimarna shloka
तत्त्वेन यस्य महिमार्णवशीकराणुः
शक्यो न मातुमपि सर्वपितामहाद्यैः।
कर्तुं तदीयमहिमस्तुतिमुद्यताय
मह्यं नमोस्तु कवये निरपत्रपाय॥५॥*
जिनकी महिमारूप समुद्रके छोटे-से-छोटे जलकणका भी मान बतलानेको शिव और ब्रह्मा आदि देवता भी समर्थ नहीं हैं; उन्हींकी महिमाका स्तवन करनेके लिये उद्यत हुए मुझ निर्लज्ज कविको नमस्कार है ! (भला, मैं उनकी महिमा क्या जानूँ)? ॥ ५ ॥