यद्वा श्रमावधि यथामति /yadva shramavadhi shloka
यद्वा श्रमावधि यथामति वाप्यशक्तः
स्तौम्येवमेव खलु तेऽपि सदा स्तुवन्तः।
वेदाश्चतुर्मुखमुखाश्च महार्णवान्तः
को मज्जतोरणुकुलाचलयोर्विशेषः॥६॥
अथवा असमर्थ होनेपर भी अपने परिश्रम और बुद्धिके अनुसार मैं स्तुति करूँगा ही, क्योंकि सदा स्तुति करनेवाले वेद और ब्रह्मा आदि देवता भी श्रम और बुद्धिके अनुसार ही स्तुति करते हैं, (पूरी-पूरी स्तुति उनसे भी नहीं हो पाती, फिर मुझसे उनमें कोई विशेषता नहीं) भला, महासागरके बीच डूबते हुए परमाणु और कुल-पर्वतोंमें क्या अन्तर है? ॥ ६॥