F किञ्चैष शक्तयतिशयेन /kinchaish shakta yatishayena shloka - bhagwat kathanak
किञ्चैष शक्तयतिशयेन /kinchaish shakta yatishayena shloka

bhagwat katha sikhe

किञ्चैष शक्तयतिशयेन /kinchaish shakta yatishayena shloka

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किञ्चैष शक्तयतिशयेन /kinchaish shakta yatishayena shloka

किञ्चैष शक्तयतिशयेन न तेऽनुकम्प्यः

स्तोतापि तु स्तुतिकृतेन परिश्रमेण।

तत्र श्रमस्तु सुलभो मम मन्दबुद्धे-

रित्युद्यमोऽयमुचितो मम चाब्जनेत्र॥७॥

हे कमलनयन भगवन् ! कोई भी स्तुति करनेवाला अपनी शक्तिकी अधिकतासे तुम्हारी दयाका पात्र नहीं होता, बल्कि स्तुति करते-करते जब थक जाता है तो उसकी थकावटके कारण आप उसपर दया करते हैं। ऐसी दशामें ब्रह्मा आदि तो अधिक शक्तिमान् होनेके कारण जल्दी नहीं थक सकते, पर मैं तो मन्दबुद्धि हूँ, मेरा शीघ्र ही थक जाना अधिक सम्भव है, अत: ब्रह्मादिसे पहले मैं ही आपका कृपापात्र बनूँगा!-इसलिये स्तुति करनेका यह मेरा उद्योग उचित ही है॥ ७॥

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 किञ्चैष शक्तयतिशयेन /kinchaish shakta yatishayena shloka


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