नावेक्षसे यदि ततो /navechhase yadi tato shloka
नावेक्षसे यदि ततो भुवनान्यमूनि
नालं प्रभो भवितुमेव कुतः प्रवृत्तिः।
निसर्गसुहृदि त्वयि सर्वजन्तोः
स्वामिन्न चित्रमिदमाश्रितवत्सलत्वम्॥८॥
हे भगवन् ! यदि आप इन लोकोंकी ओर दृष्टि न डालें तो इनकी उत्पत्ति ही नहीं हो सकती, फिर प्रवृत्ति तो हो ही कैसे सकती है? इस प्रकार समस्त प्राणियोंके स्वाभाविक सुहृद् आपमें अपने आश्रितजनोंके ऊपर वत्सल (सदय) होनेका गुण रहना आश्चर्यकी बात नहीं है ॥ ८॥