स्वाभाविकानवधिका /svabhavika navadhika shloka
स्वाभाविकानवधिकातिशयेशितृत्वं
नारायण त्वयि न मृष्यति वैदिकः कः।
ब्रह्मा शिव: शतमखः परमः स्वराडि-
त्येतेऽपि यस्य महिमार्णवविपुषस्ते॥९॥
हे नारायण! कौन ऐसा वेदवेत्ता पुरुष है, जो आपके स्वाभाविक निरवधि और निरतिशय ऐश्वर्यको सहन न कर सकता हो? क्योंकि ब्रह्मा, शिव, इन्द्र और बड़े-बड़े आत्माराम मुनि भी आपकी महिमारूप महासागरकी छोटी बूंदोंके समान हैं ॥ ९॥