संसारसागरं घोरमनन्तं /sansar sagar ghor mananta shloka संसारसागरं घोरमनन्तं /sansar sagar ghor mananta shlokaसंसारसागरं घोरमनन्तं क्लेश भाजनम। त्वामेव शरणं प्राप्य निस्तरन्ति मनीषिणः॥१००॥ज्ञानीजन आपकी ही शरण लेकर इस अपार दुःखमय भयङ्कर संसार-सागरसे पार हो जाते हैं।॥ १०० ॥ सूक्तिसुधाकर के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक करके। -click-Suktisudhakar shloka list sukti sudhakar / सूक्तिसुधाकर संसारसागरं घोरमनन्तं /sansar sagar ghor mananta shloka Share this post