अभिमानं सुरापानं /abhimanam surapanam shloka
अभिमानं सुरापानं गौरवं रौरवं समम्।
प्रतिष्ठा सूकरीविष्ठा त्रयं. त्यक्त्वा हरि भजेत्॥ ९९ ॥
अभिमान मद्यपानके समान है, गौरव (बड़प्पन) रौरवनरकके तुल्य है और प्रतिष्ठा (मान-बड़ाई) सूकर- विष्ठाके सदृश है; अतः इन तीनोंको त्यागकर हरिका भजन करे ॥ ९९॥