स्वकर्मफल निर्दिष्टां /svakarma fal nirdishta shloka
स्वकर्मफलनिर्दिष्टां यां यां योनि व्रजाम्यहम्।
तस्यां तस्यां हृषीकेश त्वयि भक्तिर्दृढास्तु मे॥६६॥*
हे इन्द्रियोंके सूत्रधार! अपने कर्मों के अनुसार होनेवाली जिन-जिन योनियोंमें मैं जाऊँ, हर एकमें तुमसे मेरा अटूट प्रेम बना रहे ॥६६॥