आर्ता विषण्णा: शिथिलाश्च भीता /arta vishanna shloka
आर्ता विषण्णा: शिथिलाश्च भीता घोरेषु व्याघ्रादिषु वर्तमानाः।
सङ्कीर्त्य नारायणशब्दमानं विमुक्तदुःखा सुखिनो भवन्ति॥६७॥*
घबराये हुए, विषादयुक्त, ढीले पड़े हुए, भयभीत हुए, भयङ्कर बाघ आदिके चंगुलमें फँसे हुए मनुष्य भी 'नारायण' नाममात्रका उच्चारण करते ही दुःखसे छूटकर सुखी हो जाते हैं ॥६७॥