या प्रीतिरविवेकानां /ya preeti vivekina shloka
या प्रीतिरविवेकानां विषयेष्वनपायिनी।
त्वामनुस्मरतः सा मे हृदयान्मापसर्पतु ॥ ७४॥*
मूढ़ लोगोंकी जिस प्रकार विषयों में नित्य प्रीति बनी रहती है, उसी प्रकार तुम्हारा बारम्बार स्मरण करते हुए मेरे हृदयमें भी वही प्रीति हो । ७४ ।