यन्नाम कीर्तनपरः/yannam kirtan parah shloka
यन्नामकीर्तनपरः श्वपचोऽपि नूनं
हित्वाखिलं कलिमलं भुवन पुनाति।
दग्ध्वा ममाघमखिलं करुणेक्षणेन
दृग्गोचरो भवतु मेऽद्य दीनबन्धुः॥१२॥
जिनके नाम-कीर्तनमें तत्पर चाण्डाल भी अपने समस्त कलिमलका नाश करके सम्पूर्ण संसारको निश्चय ही पवित्र कर देता है, वे दीनबन्धु हमारे सभी पापोंको अपनी दया-दृष्टिसे भस्म करके, मेरी आँखोंके सामने प्रकट हों॥ ९२॥