F adhunik kahani sangrah (वैद्य बना राजवैद्य) - bhagwat kathanak
adhunik kahani sangrah (वैद्य बना राजवैद्य)

bhagwat katha sikhe

adhunik kahani sangrah (वैद्य बना राजवैद्य)

adhunik kahani sangrah (वैद्य बना राजवैद्य)

 adhunik kahani sangrah 

adhunik kahani sangrah (वैद्य बना राजवैद्य)

(वैद्य बना राजवैद्य) 

भारत की पश्चिमी सीमा पर सिन्धु प्रान्त है। पुराने समय में वहाँ एक राजा राज्य करता था। राजा बहुत ही सुयोग्य था। 


उसकी प्रजा सब प्रकार से सुखी थी पर राजा कच्चे कोढ़ से पीड़ित था और उसके शरीर पर जगह-जगह सफेद निशान बन गये थे। कई वैद्यों से इलाज कराने पर भी राजा को लाभ नहीं हुआ।


राजा की इस बीमारी का नाम सोमदेव नामक वैद्य ने भी सुना। वह राजा के पास गया और राजा को विश्वास दिया कि मैं इस रोग को ठीक कर दूँगा। 


इलाज के लिए पन्द्रह दिन का समय और एक हजार रुपये माँगे। राजा ने स्वीकार कर लिया और वैद्य के कहने पर पास ही एक कुटिया बनवा दी। वैद्य जी औषधि-निर्माण में लग गये।


एक दिन रात को सोते समय राजा सोचने लगा कि मैं तो राजा हूँ, इसलिए वैद्य को एक हजार रुपये दे दिये। पर यदि किसी गरीब को यह रोग हो जाये तो वह एक हजार रुपये कहाँ दे पायेगा! कुछ देर तक वह इसी विचार में उलझा रहा कि गरीब का इलाज कैसे हो पायेगा।

 adhunik kahani sangrah 


उधर वैद्य सोमदेव दवा बना रहे थे। तभी उनकी कुटिया में एक व्यक्ति ने प्रवेश किया। व्यक्ति वेश-भूषा से गरीब लग रहा था और उसने कम्बल ओढ़ रखा था।


उसने हाथ जोड़कर वैद्य जी से कहा-“वैद्यराज! आप राजा के जिस रोग का इलाज कर रहे हैं, वैसा ही रोग मुझे भी है, पर में गरीब है, इसलिए एक हजार रुपये नहीं दे सकता।"


यह कहकर उसने कम्बल उतारकर अपना शरीर वैद्य जी को दिखा दिया। फिर कम्बल को लपेटते हा बोला-“क्या आप मेरा इलाज कर देंगे?"


वैद्य ने उसके शरीर को देख तो लिया ही था। उन्होंने उससे कहा-“तुम्हारा इलाज अवश्य हो जायेगा। देखो, कुटिया से बाहर मूली का खेत है। पत्तों पर ओस गिर रही है।


जाओ, मूली के जितने पत्ते खा सको, खाओ और इन निशानों पर भी रगड़ो। ऐसा प्रतिदिन करो। दस-पन्द्रह दिन में ठीक हो जाओगे।"

गरीब आदमी वैद्य जी को धन्यवाद देकर चला गया।

 adhunik kahani sangrah 


पूरे पन्द्रह दिन बाद वैद्य सोमदेव राजा की औषधि लेकर दरबार में उपस्थित हुए। राजा ने उन्हें देखा और हँसकर बोला-“वैद्यराज जी, आपकी कृपा से मेरा रोग दूर हो गया है।


गरीब आदमी के वेश में कम्बल ओढ़कर मैं ही आपकी कुटिया में गया था। पर मुझे यह आश्चर्य हो रहा है कि जब यह रोग केवल मूली के पत्ते खाने और लगाने से ठीक हो सकता था तो आपने और औषधि क्यों बनाई और व्यर्थ ही एक हजार रुपये क्यों खर्च किये?"


राजा की बात सुनकर सोमदेव के होंठों पर मुस्कराहट आ गई। उसने कहा-“राजन्! इन शीशियों में मूली के पत्तों का ही रस है।


गरीब के रूप में आपने मूली के पत्ते खाना स्वीकार कर लिया परन्तु राजा से मैं यह बात कहता तो आप अप्रसन्न होकर मुझे दुत्कार देते।"


थोड़ी देर तक रुककर सोमदेव ने पुनः कहा-“महाराज! औषधि गरीब और अमीर पर समान रूप से प्रभाव डालती है परन्तु अमीर व्यक्ति सस्ती दवा पर विश्वास नहीं करते।"


सोमदेव जी की बात सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उन्हें राजवैद्य के पद पर नियुक्त कर दिया।

  दृष्टान्त महासागर के सभी दृष्टांतो की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickdrishtant mahasagar list

https://www.bhagwatkathanak.in/p/blog-page_24.html

adhunik kahani sangrah (वैद्य बना राजवैद्य)

 adhunik kahani sangrah 


Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3