akbar birbal story in hindi
(जाति-पांति छिपती नहीं)
बादशाह अकबर के नाम से सभी परिचित हैं। एक बार उनके दरबार में पाँच साधु आये।
बादशाह ने उनकी जाति पूछी तो उनमें से एक ने कहा-“
जाति-पांति पूछे नहिं कोय।"
शेष जो चार थे उन्होंने भी उसकी बात का समर्थन किया। पर बादशाह सन्तुष्ट नहीं हुआ। उसने बीरबल से कहा कि इनकी जाति का पता किया जाए।
दूसरे दिन बीरबल ने पाँचों साधुओं को दरबार में बुलाया। उनके आ जाने पर उन सबसे प्रश्न किया-“
क्या आप लोग भगवान को मानते हैं?"
सबने एक साथ एक स्वर में उत्तर दिया-“बेशक मानते हैं।" बीरबल बोले-“आप सब लोग स्वेच्छा से कोई पद्य (कविता ) सुनायें।",
पहले साधु ने पद्य सुनाया
राम नाम लड्डू, गोपाल नाम घी।
। जब लगे भूख, घोल-घोल पी॥
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दूसरे साधु का पद्य था
रामनाम शमशेर पकड़ ले कृष्ण कटारी बाँट दिया।
दया धर्म की ढाल बना ले, यम का द्वारा जीत लिया।
तीसरे साधु ने यह पद्य कहा
साहिब मेरा बानिया, सहज करे व्यौपार।
बिन डंडी बिन पालड़े, तोले सब संसार॥
चौथा बोला
रामझरोखे बैठ के, सबका मुजरा लेय।
जैसी जाकी चाकरी, ताको तैसी देय॥
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पाँचवाँ बोला
जाति-पाँति पूछे नहीं कोय।
हरि को भजे सो हरि का होय॥
बीरबल ने बादशाह को बताया-“बादशाह सलामत! पहला साधु ब्राह्मण है, दूसरा क्षत्रिय, तीसरा वैश्य, चौथा शूद्र और पाँचवां वर्णसंकर है।"
बादशाह ने साधुओं से जब इस सम्बन्ध में जानकारी ली तो उन्होंने बीरबल को ठीक बताया।
तब बीरबल ने बताया-“कोई भी व्यक्ति अपनी जाति नहीं छिपा सकता। इन साधुओं ने जो दोहे सुनाये हैं, उनसे ही उनके कर्मों की झलक मिल जाती है।
ब्राह्मण लालची और भोजनभट्ट होते हैं। अत: ब्राह्मण साधु के दोहे में लड्डू और घी का उल्लेख हुआ है।
इसी प्रकार क्षत्रिय साधु के दोहे में शमशेर, कटार और ढाल का उल्लेख किया गया है।
वैश्य साधु ने दोहे में डंडी और पलड़े का जिक्र किया है। शूद्र साधु की भी यही बात है। उसके दोहे में चाकरी और मुजरा शब्द आये हैं।
रह गया पाँचवाँ साधु तो वर्णसंकर होने के कारण वह अपनी जाति छिपाना चाहता है, इसलिए उसकी रट है कि-जाति-पाँति पूछे नहिं कोय।" बीरबल की व्याख्या से बादशाह खुश हो गया।