हिंदी कहानी संग्रह pdf
तृष्णा सबको पागल बना देती है।
एक राजा था। उसका नाम था विश्वकेतु। विश्वकेतु ने अपने राजकुमारों को शिक्षा देने के लिए एक ब्राह्मण की नियुक्ति की।
वह ब्राह्मण वैसे तो बड़ा प्रकाण्ड विद्वान था, लेकिन नित्य ही राजसी वैभव की चकाचौंध से उसके मन में लोभ और काम-वासना पैदा होने लगी।
एक दिन जब उसने राजकुमारी प्रियंवदा को देखा तो वह उस पर आसक्त हो गया।
राजा के पास जाकर उसने कहा-“राजन्! मैंने राजकुमारों को अमूल्य ज्ञान की गंगा में स्नान करा दिया है, इसके बदले में मैं चाहता हूँ कि आप राजकुमारी के साथ मेरा विवाह कर दें।"
ब्राह्मण की ऐसी विचित्र माँग सुनकर राजा को अच्छा नहीं लगा। पर उसने ब्राह्मण जानकर उससे कहा-“ब्राह्मण देवता! जैसे शब्द आपने बोले है, वे आप जैसे विद्वान और साधु स्वभाव के व्यक्ति को शोभा नहीं देते।
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राजकुमारी का वाग्दान गन्धर्वसेन के लिए हो चुका है। अतः मैं आपकी इच्छा पूर्ण करने में समर्थ नहीं हैं।"
यह सुनते ही ब्राह्मण क्रोध से बावला हो गया। उसने राजा से कहा-“यदि आप मेरी इच्छा की पूर्ति नहीं करेंगे तो मैं आपको शाप दे दूंगा।"
राजा ब्राह्मण की बात सुनकर तनिक भी विचलित नहीं हुआ। वह बोला-“जिस ब्राह्मण को धर्म-अधर्म और उचित-अनुचित में अन्तर दिखाई नहीं देता, उसके शाप से किसी का कुछ नहीं बिगड़ता।”
कोधित होकर ब्राह्मण वहाँ से चला गया और गुरु गोरखनाथ के पास जाकर उनकी मन लगाकर सेवा करने लगा।
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उसकी सेवा से प्रसन्न होकर एक दिन गोरखनाथ ने उसकी इच्छा पूछी। ब्राह्मण ने सारा वृत्तान्त सुनाकर विश्वकेतु की कन्या प्रियंवदा से अपना विवाह करने की इच्छा प्रकट कर दी।
गोरखनाथ जी ने उसे समझाया-“ब्राह्मणों को भोग-विलास और आमोदप्रमोद से दूर रहना चाहिए।"
पर ब्राह्मण अपने हठ पर अड़ा था। उसने कहा“यदि आप मेरी इच्छा पूरी कर दें तो मैं आपको राजगुरु बनवा दूंगा।"
गुरु ने उसकी शर्त स्वीकार कर ली और उसके मुख पर छींटे मारे। ब्राह्मण की जब आँख खुली तो उसने स्वयं को राजसी वस्त्रों से आच्छादित पाया।
उसके पीछे हजारों सैनिक हथियार लिये खड़े थे। उसने सैनिकों को राजा विश्वकेतु पर आक्रमण करने का आदेश दिया।
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दोनों सेनाओं में घोर युद्ध हुआ और विश्वकेतु को बन्दी बना लिया गया। ब्राह्मण ने राजा की बेटी प्रियंवदा के साथ जबरन विवाह कर लिया और स्वयं को राजा घोषित करके राज्य करने लगा।
एक दिन उसके दरबार में एक बूढा साधु आया। उसने राजा से कहा-“राजन्! अब आप मुझे दिये गये वचन का पालन करिए और मुझे राजगुरु की पदवी दिलवाइए।"
बूढ़े साधु की बात सुनकर राजा को क्रोध आ गया। उसने कहा-“बूढ़े! अगर तूने बेकार की बात की तो तेरी जबान खिंचवा लूँगा।"
पर बूढ़ा साध अविचल खड़ा रहा और स्वयं को राजगुरु बनाने की बात कहता रहा।
राजा ने सिपाहियों को आज्ञा दी- "इस बूढ़े की कमर को कोड़ों से उधेड़ दिया जाये।
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फिर इसे भेड़ियों के सामने डाल दिया जाये ताकि वे इसे नोच-नोच कर खा जायें।"
यह कहकर उसने बूढ़े को लात से धक्का मार दिया।
जैसे ही उसने बूढ़े साधु को लात मारी, उसका सारा शरीर झन-झन कर उठा और उसकी आँखें मिंच गईं।
जब आँखें खुली तो उसने स्वयं को ब्राह्मण बना देखा। सामने खड़े थे गुरु गोरखनाथ।
पूरी बात उसके ध्यान में आ गई। वह गोरखनाथ जी के चरणों पर गिर पड़ा और बोला- “गुरुवर! मेरी आँखें अज्ञान के पर्दे से ढक गई थीं, जो अब हट गया है।
कृपया मुझे क्षमा-दान देकर कृताथ करें और मुझे ज्ञान का उपदेश दें।”