i kahani lyrics
दुर्बल को न सताइए
बगदाद का एक बादशाह था। बादशाह का नाम था-हारूँ-अल-रशीद। वह अपना राजकोष भरने के लिए नये-नये प्रयोग करता रहता था।
कभी किसी प्रकार का कर लगा देता और कभी किसी प्रकार का। एक बार उसने अपनी प्रजा पर नमक-कर लगाने का फैसला किया।
उसने पूरे राज्य में मुनादी कराई-“प्रत्येक नागरिक अपनी आय का चौथा भाग (पच्चीस प्रतिशत) नमक-कर के रूप में राजकोष में जमा करायेगा। जो ऐसा नहीं करेगा, उसके विरुद्ध कार्रवाई की जायेगी।"
मुनादी हुई तो नगर में हाहाकार मच गया। सबने अपने मन में इसे अनुचित कदम माना। पर बादशाह के आदेश का उल्लंघन कौन करता? किसी में इतना साहस ही नहीं था।
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मुनादी के दूसरे दिन ही एक किसान साहस सँजोकर बादशाह के पास जा पहुँचा।
उसने विनम्र शब्दों में बादशाह से निवेदन किया-“जहाँपनाह! धृष्टता की मैं क्षमा माँगता हूँ और यह जानना चाहता हूँ कि आपने नमककर किस प्रयोजन से लगाया है।
इससे मेरी जिज्ञासा का समाधान हो जायेगा।" ___ बादशाह बोला-“अवश्य बताऊँगा।
बताऊँगा ही नहीं, पूरी तरह समझाऊँगा भी, तुम मेरी बात को ध्यान से समझने का प्रयास करो।"
बादशाह ने कहना शुरू किया-“मैं अपनी प्रजा को अपने बच्चे समझता हूँ और स्वयं को प्रजा का पिता।
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मैं पिता की भाँति ही पूरी प्रजा की रक्षा करता हूँ। प्रजा पर जब भी कोई संकट आता है तो मैं बहुत ही चिन्तित हो जाता हूँ।
प्रजा-जनों की भूख शान्त करने के लिए भोजन की व्यवस्था करता हूँ। इसका अर्थ है कि प्रजा की सुख-सुविधा का सदा ही मुझे ख्याल रहता है।
तुम जानते होंगे कि इन सब बातों के लिए धन की आवश्यकता होती है। बस, इसलिए मैंने प्रजा पर थोड़ा-सा नमक-कर लगा दिया है। इसमें कुछ गलत तो नहीं है।"
सुनकर किसान बोला- “जहाँपनाह! सचमुच इसमें कुछ गलत नहीं है।
विश्वास है कि आप जो कर रहे हैं वह हमारी भलाई के लिए ही है।
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इससे एक शिक्षा प्राप्त हो गई है। अब मैं भी इसका उपयोग अपने घर में करूँगा।"
बादशाह ने पूछा- “कैसे?" किसान ने उत्तर में कहा-“जहाँपनाह! मैंने अपने घर एक कुत्ता पाला है।
मैं बराबर उसका ख्याल रखता हूँ। जब कभी-भी उसे चोट वगैरह जाती है, मैं अपने बच्चों की तरह उसकी सेवा-टहल करता हूं।
जब उस भूख लगती है तो उसे रोटी खाने के लिए देता हूँ। मगर कल से भूख लगने पर जब रोटी माँगने के लिए मेरे तलवे चाटेगा तो मैं उससे कहूँगा-'मेरे बेटे! मुझे एहसास है कि तू भूखा है।
ठहर, मैं इसकी व्यवस्था करता हूँ।' फिर एक छुरी लाकर उससे उस कुत्ते की पूंछ में से थोड़ा-सा टुकड़ा काटकर उसके सामने रख दूंगा और कहूँगा-'मेरे बेटे! मैं तेरी रक्षा अपने बच्चे की तरह करता हूँ।
मुझे तेरी भलाई का सदा ध्यान रहता है। इसलिए तेरी पूँछ का एक छोटा-सा टुकड़ा काटकर तुझे दिया है। तू इसे खा ले और खुश हो जा।'
किसान की बात सुनते ही बादशाह को यह अनुभव हो गया कि प्रजा पर नमक-कर लगाने का निर्णय उचित नहीं है। दूसरे दिन उसने नमक-कर समाप्त करने की मुनादी करा दी।