कहानी इन हिंदी
सब धन धूरि समान
महाराजा रणजीत सिंह के नाम से सभी परिचित हैं। एक बार उनके दरबार में एक महात्मा आये।
महात्मा का मुँह कान्ति से दमक रहा था। रणजीत सिंह ने यथायोग्य आदर-सत्कार से उन्हें सम्मानित किया। फिर उन्हें अपने कोषागार में ले गये।
जब महाराजा ने महात्मा को राजकोष में हीरे, पन्ने, मोती, नीलम आदि बहुमूल्य रत्न दिखाये तो महात्मा ने सहज भाव से पूछा-“इन पत्थरों से आपको कितनी आय हो जाती है?"
रणजीत सिंह ने उत्तर दिया-“इससे क्या आय हो सकती है? उलटे इन कीमती रत्नों की रक्षा के लिए मुझे बहुत-सा धन खर्च करना पड़ता है।" ..
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महात्मा ने मुस्कान के साथ कहा-"फिर ये कीमती कैसे हो सकते हैं? मन तो इनसे कहीं अधिक मूल्यवान पत्थर देखा है।"
राजा चकित रह गया। उसने कहा-“अच्छा! क्या आप मुझे वह मूल्यवान पत्थर दिखा सकेंगे?"
महात्मा बोले-“अवश्य! अभी चलो।"
महात्मा राजा को पास के ही एक गाँव में ले गये। सामने ही एक छोटी-सी कुटिया थी।
दोनों ने उस कुटिया में प्रवेश किया। वहाँ एक बुढ़िया पत्थर की चक्की से अनाज पीस रही थी।
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महात्मा ने महाराज से कहा- “महाराज! यही वह मूल्यवान पत्थर है। आपके कोषागार में सारे पत्थर निष्क्रिय अवस्था में पड़े हैं और यह पत्थर इस बुढ़िया को जीविका और जीवन देता है।
इसी पत्थर का उपयोग करके यह अपना पेट भरती है। अतः आपके उन पत्थरों से यह पत्थर अत्यधिक मूल्यवान है।”
“जब आवे सन्तोष धन, सब धन धूरि समाना"