कहानी ebook (सुख की जड़ धर्म है)

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कहानी ebook (सुख की जड़ धर्म है)

(सुख की जड़ धर्म है)

फारस के एक प्रसिद्ध बादशाह थे। बादशाह का नाम था-नौशेरवाँ-एदिल। नौशेरवाँ-ए-दिल बहुत ही न्यायप्रिय और दयावान थे।


उनके पिता ने जिनका नाम कोबाद था, अपना पारसी धर्म त्याग दिया था और मजदक नाम के एक पाखण्डी द्वारा चलाये गये मजदकी धर्म को अपना लिया था।


मजदकी धर्म का सिद्धान्त था- “संसार की प्रत्येक वस्तु ईश्वर ने बनाई है इसलिए किसी भी वस्तु पर किसी एक व्यक्ति का अधिकार नहीं हो सकता, उस पर प्रत्येक व्यक्ति का एक समान अधिकार है।


परिणाम यह हुआ कि उनके राज्य में शान्ति और अमन समाप्त हो गया और अशान्ति पर काबू पाना कठिन हो गया। कोबाद को इससे बड़ी चिन्ता और बेचैनी हुई और अन्तत: उन्हें मृत्यु ने अपना ग्रास बना लिया।

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राज-सिंहासन खाली हो गया। सरदारों ने नौशेरवाँ से राज-सिंहासन सँभालने को कहा तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा-“मुझे. अशान्ति एवं अव्यवस्थित राज्य नहीं चाहिए। इसकी अपेक्षा मैं निर्धन होकर सादगी से अपना जीवन जीना अधिक पसन्द करूंगा।"


जब सरदारों ने अपना आग्रह नहीं छोड़ा तो वे एक शर्त पर राज्य सँभालने के लिए सहमत हो गये। उन्होंने कहा- “मैं इसी शर्त पर सिंहासन स्वीकार करूँगा कि प्रजा को मेरे आदेश का पालन करना होगा।


शर्त मान ली गई तो उन्होंने राज्य-सिंहासन सँभाल लिया। एक दिन राज-दरबार जमा हुआ था। उसी समय एक व्यक्ति आया और बादशाह से फरियाद करने लगा-"एक मजदकी ने मेरी पत्नी का अपहरण कर लिया है।"

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बादशाह ने उस मजदकी को बुलाकर पूछा कि तुमने ऐसा अपराध क्यों किया! मजदकी बोला-“मजदकी सिद्धान्त के अनुसार वह स्त्री किसी एक की संपत्ति नहीं है। उस पर सबका समान रूप से अधिकार है।"


बादशाह नाशरवा ने कहा-“वह धर्म धिक्कारने योग्य है जो लूटमार और अन्याय का समर्थन करता है। मेरे राज्य में इस प्रकार का धर्म नहीं चल सकेगा।"


यह सुनते ही उस व्यक्ति पर क्रोध सवार हो गया। उसने बादशाह से कहा-“जहाँपनाह! जिस धर्म को हजारों लोग मानते हैं उसे आप कैसे नष्ट कर सकते हैं! यह तो घोर अन्याय माना जायेगा।"


नौशेरवाँ ने सहज रूप में उत्तर दिया- “मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूँ कि अन्याय किस धर्म से और किस कर्म से होता है।

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तुमने अन्याय किया है और अपना तर्क देकर उसे स्वीकार भी किया है। अतः तुम्हें मृत्यु-दण्ड की सज़ा दे रहा हूँ।"


इसके साथ ही उन्होंने धर्म के नाम पर लूटमार करने वाले प्रत्येक मजदकी को कारागार में बंद करा दिया। इसके बाद जो वस्तु जिसकी थी, उसी मालिक को लौटा दी गई।


इस प्रकार उनके राज्य में न्याय और सुव्यवस्था का वातावरण बन गया और राज्य की सुख-शान्ति वापस लौट आई।

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