danveer karna story in hindi /दानवीर कर्ण के लिए कुछ भी अदेय नहीं

 danveer karna story in hindi

danveer karna story in hindi /दानवीर कर्ण के लिए कुछ भी अदेय नहीं

दानवीर कर्ण के लिए कुछ भी अदेय नहीं

एक दिन एक भाट दुर्योधन के द्वार पर जाकर उसके यश का गान करने लगा। दुर्योधन ने सुवर्ण आदि देकर उसे सम्मानित किया।


फिर बोला- “मैं कर्ण से भी अधिक दान देता हूँ, अतः सब जगह मेरे यश का ही गुणणान किया करो।"


भाट प्रसन्न होकर चला गया।

दुर्योधन की बात विष्णु भगवान ने सुन ली थी। उन्होंने सोचा कि दुर्योधन की परीक्षा ली जाये।


अतः उन्होंने बूढ़े ब्राह्मण का रूप धरा और दुर्योधन के द्वार पर पहुँच गये। दुर्योधन ने उन्हें श्रद्धा के साथ आसन पर बैठाया।


फिर हाथ जोड़कर कहने लगा-“ब्राह्मण देवता! आपके यहाँ पधारने के लिए धन्यवाद! मेरे योग्य कोई सेवा हो तो कहिए।"

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ब्राह्मण ने कहा-“राजन्! मुझे न तो अन्न की आवश्यकता है, न ही जल या सुवर्ण की।


मैं अपने माता-पिता का क्रिया-कर्म करने के लिए द्वारका जाना चाहता हूँ, पर बूढ़ा हो जाने के कारण चलने की शक्ति मेरे में नहीं है।


अत: मेरा बुढ़ापा लेकर अपना यौवन मुझे दे सको तो आपकी बड़ी कृपा होगी। क्रिया-कर्म से निबटकर लौटते ही आपका यौवन वापस कर दूंगा।"


दुर्योधन ने यह माँग सुनी तो वह हैरान रह गया। उसने कहा-“आप यौवन के बजाय और जो कुछ भी चाहें, माँग लें, मैं सहर्ष आपको भेंट कर दूंगा।"


ब्राह्मण ने कहा-“नहीं, मुझे तो केवल यौवन की ही आवश्यकता है।"

तब दुर्योधन यह कहकर अपने रनिवास में गया कि मैं पत्नी से पूछकर आता हूँ।

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सारी बात उसने अपनी पत्नी को बताई और उत्तर माँगा। पत्नी ने दुर्योधन से कहा-“आप बूढ़े हो जायेंगे तो एक ही स्थान पर पड़े रहेंगे।


इस स्थिति में मैं आपकी पूरी तरह सेवा नहीं कर सकूँगी। मैं आपको यौवन का दान नहीं करने दूंगी।"


दुर्योधन ने बाहर आकर बूढ़े ब्राह्मण से कह दिया- "ब्राह्मण देव! मेरी पत्नी ने यौवन देने के लिए अपनी स्वीकृति नहीं दी, अत: मैं विवश हूँ और आपको अपना यौवन नहीं दे सकता।"


ब्राह्मण देवता दुर्योधन को धिक्कारते हुए कर्ण के पास आये। कर्ण ने भी उनका यथायोग्य सम्मान किया और कहा-“कहिए, आपकी क्या सेवा करूँ?"


ब्राह्मण ने जो दुर्योधन से कहा था, वही कर्ण से भी कह दिया। सुनकर कर्ण बहुत प्रसन्न हुआ और बोला-“ब्राह्मण देवता! यह क्या बड़ी बात है।

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यदि आप मेरा सारा शरीर भी सदा के लिए माँग लें तो मैं अपने जीवन को सफल समझूंगा।"


ब्राह्मण बोले- “पर पहले अपनी पत्नी से पूछ लो, क्योंकि आपके यौवन पर उसका पूरा अधिकार है।


अतएव उसकी स्वीकृति अत्यन्त आवश्यक की यहाँ आने से पूर्व मैं एक अन्य राजा के पास गया था। उसकी पत्नी ने सयौवन दान करने की स्वीकृति नहीं दी थी।"


कर्ण अपने अन्तःपुर में गया और ब्राह्मण की इच्छा अपनी पत्नी को बता दी।


कर्ण की पत्नी ने कहा- “स्वामी! जीवन तो क्षणभंगुर है। यदि जीते जी हमारे शरीर से किसी का भला हो जाये तो हमें देने में विलम्ब नहीं करना चाहिए।

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हमने पर्याप्त यौवन सुख पा लिया है, अब बुढ़ापे में शान्ति मिल जाये तो बहुत अच्छी बात है, हमें पीछे नहीं हटना चाहिए।


आपको तो यह बात सीधे ही स्वीकार कर लेनी चाहिए थी, मेरी अनुमति या स्वीकृति की तो कोई आवश्यकता ही नहीं थी।


आप बूढे हो जायेंगे तब भी मेरे स्वामी ही रहेंगे और मैं सदा की भाँति आपकी सेवा करती रहूँगी।"


कर्ण ने बाहर आकर ब्राह्मण को बताया कि मेरी पत्नी ने मुझे अनुमति दे दी है। मैं अपना यौवन देने को तैयार हूँ।"


तभी विष्णु ने अपना वास्तविक रूप प्रकट कर दिया और कहा-“कर्ण! मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था और तुम उसमें सफल हो गये हो।"

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danveer karna story in hindi /दानवीर कर्ण

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