bal kahani sangrah hindi mein / नासमझ को समझ

bal kahani sangrah hindi mein

bal kahani sangrah hindi mein / नासमझ को समझ

 नासमझ को समझ

एक राजा था। राजाओं को शिकार खेलने का शौक होता है। अतः वह एक दिन शिकार खेलने गया। जंगल में वन्य जीवों का पीछा करते हुए वह रास्ता भटक गया।


भटकता-भटकता एक वनवासी की झोंपड़ी पर पहुँच गया। वनवासी ने अतिथि को भोजन कराया, पानी पिलाया और सब प्रकार का आराम पहुँचाया। तब कहीं राजा की थकान मिटी।


जब राजा वहाँ से चलने लगा तो उसने वनवासी से कहा- “मैं इस राज्य का राजा हूँ। तुमने मेरी बहुत सेवा और सम्मान किया है।


मैं तुमसे बहुत खुश हूँ। मैं तुम्हें एक नगर के चन्दन के पेड़ों का बाग देता हूँ। उससे जीवन का निर्वाह आनन्दपूर्वक कर सकोगे।" ऐसा कहकर राजा ने उसे एक आज्ञापत्र लिखकर दे दिया।

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वनवासी उस आज्ञापत्र को लेकर नगर-अधिकारी के पास गया। अधिकारी ने राजा का पत्र देखकर चन्दन का बगीचा वनवासी को सौंप दिया। चन्दन की लकड़ी कितने महत्व की होती है और उससे किस प्रकार लाभ उठाया सकता है, यह ज्ञान वनवासी को नहीं था।


अतः वह चन्दन के वृक्ष काटता, उस लकड़ी को जलाकर कोयला बनाता और बाजार में बेच देता। इस प्रकार उसका निर्वाह होने लगा।


धीरे-धीरे बगीचे के सभी पेड़ समाप्त हो गये। केवल एक वृक्ष शेष रह गया। उस पर से भी उसने थोड़ी-सी लकड़ी काटी पर वर्षा होने के कारण कोयला नहीं बना सका।


विवश होकर लकड़ी का गट्ठा लेकर बाजार में बेचने चला गया। जब वह बाजार में चला जा था रहा तो चंदन की सुगंध से प्रभावित होकर लोगों ने उसका भारी मूल्य चुकाया।

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वनवासी को बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने लोगों से इसका कारण पूछा। लोगों ने कहा-“यह चन्दन की लकड़ी है, चन्दन की लकड़ी बहुत मूल्यवान होती है।


यदि तुम्हारे पास ऐसी और लकड़ी हो तो तुम्हें उसका बहुत मूल्य प्राप्त हो सकता वनवासी को अपनी नासमझी पर बड़ा पश्चात्ताप हुआ।


उसने कहा- “मैंने इतने बहुमूल्य चन्दन के वृक्षों को कौड़ी के मोल बेच दिया। तब पश्चात्ताप करते हुए उस मूर्ख व्यक्ति को सांत्वना देते हुए एक विचारशील व्यक्ति ने कहा-“मित्र! पछताने से कुछ नहीं मिलेगा। यह सारा संसार तुम्हारी ही तरह नासमझ है।


जीवन का प्रत्येक क्षण बहुमूल्य है, पर लोग उसे वासना और तृष्णाओं के बदले कौड़ी के मोल गँवाते हैं। तुम्हारे पास जो एक वृक्ष बचा है उसी का सदुपयोग कर लो तो भी कम नहीं।


जो चला गया उसके लिए पश्चात्ताप व्यर्थ है और जो शेष बचा है उससे जीवन सफल कर लेना ही बुद्धिमानी है।

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