bhagwat puran shloka/भागवत पुराण दशम स्कंध उपयोगी श्लोक

भागवत पुराण दशम स्कंध उपयोगी श्लोक 

bhagwat puran shloka

भागवत पुराण दशम स्कंध उपयोगी श्लोक   bhagwat puran shloka

1.      इतर राग विस्मरण पूर्वकं भगवता शक्तिं निरोध:  

2.      कथितो  वंशविस्तारो  भवता  सोमसूर्ययो:  

राज्ञां चोभयवंश्यानां  चरितं   परमाद् भुतम्।। १०//

3.      नैषातिदु: सहा क्षुन्मां   त्यक्तोदमपि  बाधते। 

पिबन्तं त्वन्मुखाम्भोजच्युतं  हरिकथामृतम्।। १०//१३ 

4.      वासुदेव कथा प्रश्न: पुरूषांस्त्रीन् पुनाति हि। 

वक्तारं    पृच्छकं श्रोतृंस्तत्पाद सलिलं  यथा।। १०//१६

5.      अस्यास्त्वामष्टमो गर्भो हन्ता यां वहसेऽबुध: ।। १०//३४

6.      मृत्युर्जन्मवतां  वीर  देहेन   सह   जायते। 

अद्य वाब्दशतान्ते वा  मृत्युर्वै प्राणिनां ध्रुव:।। १०//३८

7.      आयु: कर्मञ्चवितंञ्चविद्या निधन मेव  

पञ्चैत्यान्यपि सृज्यन्ति गर्भस्थस्यैव  देहिन।। 

8.      गच्छ देवि व्रजं भद्रे  गोप गोभिरलड़्कृतम्। 

रोहिणी  वसुदेवस्य  भार्याऽऽस्ते नन्दगोकुले  ।। १०//

9.      आसीन: संविशंस्तिष्ठन्  भुञ्जान: पर्यटन् महीम्  

चिन्तयानो हृषीकेशमपश्यत्  तन्मयं      जगत्  ।। 

10.  सत्यव्रतं     सत्यपरं     त्रिसत्यं सत्यस्य योनिं  निहितं    सत्ये   

सत्यस्य        सत्यमृत सत्य नेत्रं  सत्यात्मकं   त्वां   शरणं प्रपन्नार्तिहरे: ।। १०//२६

11.  दिष्टयाम्ब  ते  कुक्षिगत: पर: पुमानंशेन साक्षाद्  भगवान्  भवाय :  

मा भूद्   भयं      भोजपतेर्मुमूषर्षोर्गोप्ता  यूदूनां  सविता  तवात्मज।। १०// ४१

12.  अथ सर्व गुणोपेतः कालः परमशोभनः |

यरर्ह्येवाजनजन्मर्क्षम शान्तर्क्षग्रहतारकम् ||

13.  या निषा सर्वभूतानां तस्या जागर्ति संयमी |

14.  तमद्भुतमं बालकमम्बुजेक्षणंचतुर्भुजं शंखगदार्युदायुधम् |

श्रीवत्सलक्ष्मं गलशोभि कौस्तुभं  पीताम्बरं सान्द्रपयोद सौभगम् ||

15.  बालेसु-बालेसु कानि ब्रम्हाण्डानि यस्य एव भूतं |

16.  अम्बुजायाम् ईक्षणे यस्य- अम्बुजेक्षणम् |

17.  विदितोसि भवान् साक्षात् पुरुषः प्रकृतेः परः |

केवलानुभवानन्दस्वरूपः    सर्वबुद्धिदृक  ||

18.  यदि कंशाद विभेशित्वम् तरही गाम गोकुलं मया|

19.  नन्द गोपगृहे जाता   यशोदा    गर्भ सम्भवा  

ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचल निवासिनी ।। 

20.  अहो भगिन्यहो भाम मया वां  बत पाप्मना   

पुरुषाद  इवापत्यं बहवो  हिंसिता:     सुता: ।। १०//१५

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21.  नन्दस्त्वात्मज  उत्पन्ने   जाताह्लदो महामना:  

आहूय विप्रान्  वेदज्ञान् स्नात: शुचिरलड़्कृत: ।। १०//

22.  कंसेन  प्रहिता  घोरा  पूतना   बालघातिनी। 

शिशूंश्चचार  निघ्नन्ती     पुरग्राम व्रजादिषु।। १०//

23.  सा मुञ्च  मुञ्चालमिति  प्रभाषिणीनिष्पीडयमानाखिल जीवमर्मणि   

विवृत्य   नेत्रे    चरणौ  भुजौ  मुहु:प्रस्विन्नगात्रा  क्षिपती   रूरोद  ।। १०//११

24.  इन्द्रियाणि  हृषीकेश: प्राणान् नारायणोऽवतु  

श्वेतद्वीप पतिश्चित्तं  मनो     योगेश्वरोऽवतु     ।।

25.  पूतना लोकबालघ्नी   राक्षसी    रुधिराशना। 

जिघांस यापि हरये स्तनं  दत्त्वाऽऽप सद्गतिम्  ।।

26.  ऐसो को उदार जग माहीं ,

बिनु सेवा जो द्रवै दीनपर राम सरिस कोउ नाहीं

ऐसो को उदार जग माहीं ,

जो गति योग विराग जानकर नहीं पावत मुनि ज्ञानीसो गति देत गीध शबरी को प्रभु ना बहुत जिय  जानीऐसो को उदार जग माहीं

जो संपत्ति दश शीस अरपि कर रावण शिव पहि दीन्हिसोइ संपदा विभीषण कह अति सकुच सहित हरि दीन्हितुलसीदास सब भांति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो |तो भजुराम काम सब पूरण करहिं कृपानिधि तेरोऐसो को उदार जग माहीं ||

27.  हिंस्रस्वपापेन  विहिंसित: खल:

  साधुसमत्वेन  भयाद्    विमुच्यते  ।। १०//३१

28.  गर्गपुरोहितो  राजन्   यदूनां  सुमहातपा 

व्रजं   जागाम   नन्दस्य    वसुदेवप्रचोदित।। १०//

29.  अयं हि रोहिणीपुत्रो   रमयन्  सुहृदो  गुणै:  

आख्यास्यते राम इति बलाधिक्याद् बलं विदु:

30.  कालेन     व्रजताल्पेन    गोकुले   रामकेशवौ   

जानुभ्यां  सह पाणिभ्यां  रिंगमाणौ  विजह्रतु: ।। १०//२१ 

31.  पंकाभिषिक्त    सकलावयवं    विलोक्यंदामोदरं  वदति   कोपवशात्   यशोदा   

त्वं  सूकरोऽसि   गतजन्मनि     पूतनारेइत्यक्तिसंस्मित  मुखोऽवतु  नो  मुरारे   ।। 

32.  श्रृणु  सखि  कौतुक मेकंनन्द   निकेतांगणे  मयादृष्टं   

गोधूलि        धूसरितांगनृत्यति वेदान्त       सिध्दान्त  ।। 

33.  सून्ये चोरयत: स्वयं निजगृहे हैयंगवीनं मणिस् 

तम्भे स्वप्रतिविम्ब मीक्षितवतस्तेनैव सार्ध्दं भिया। 

भ्रातर्मा वद मातरं मम समो भागस्तवा पीहितो

भुड्क्ष्वेत्यालपतो  हरे: कलवचोमात्रा रह: श्रूयते ।।

34.  मात:   एष नवनीत मिद  त्वदीयंलोभेन  चोरयितु   मद्य  गृहं  प्रविष्ट 

मद्वारणं     मनुते  मयि रोषभाजिरोषं  तनोति हि मे  नवनीत लोभ।।

35.  कृष्णक्वासि करोषि किं पितरिति श्रुत्वैव मातुर्वच

साशड्कं नवनीत चौर्यविरतो  विश्रभ्य    तामब्रवीत्  

मात:   कंकण पद्मराग  महसा  पाणिर्ममातप्यते

तेनायं नवनीत  भाण्ड  विवरे  विन्यस्य निर्वापित: ।। 

36.  वत्सान् मुञ्चन् क्वचिदसमये  क्रोशसंजात हास

स्तेयं  स्वाद्वत्त्यथ  दधि पय: कल्पितै:   स्तेययोगै:

मर्कान्  भोक्ष्यन् विभजति चेन्नात्ति भाण्डं भिनत्ति,

द्रव्यालाभे गृहकुपितो  यात्युपक्रोश्य    तोकान्  ।।१०//२९

37.  शेष महेश गणेश दिनेश सुरेशहुं जाहि निरंतर गावैं,

जाहि अनादि अनंत अखंड अछेद अभेद सुवेद बतावैं |

नारद से शुक-व्यास रटे पछिहारे तौ पुनि पार पावैं ,

ताहि अहीर की छोहरियां छछिया भर छांछ पे नाच नचावैं |

38.  नाहं   भक्षितवानम्ब   सर्वे    मिथ्याभिशंसिन:  

यदि  सत्यगिरस्तर्हि  समक्षं  पश्य  मे  मुखम्   ।। 

39.  द्रोणो  वसूनां   प्रवरो   धरया  सह  भार्यया   

करिष्यमाण  आदेशान्   ब्रह्मणस्तमुवाच   ।। १०//४८

40.  एकदा   गृहदासीषु    यशोदा   नन्दगेहिनी   

कर्मान्तर नियुक्तासु   निर्ममन्थ   स्वयं दधि ।। १०//

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41.  वाणी  गुणानुकथने  श्रवणौ  कथायां

      हस्तौ     कर्मसु   मनस्तव  पादयोर्न:  

स्मृत्यां  शिरस्तव   निवास जगत्प्रणामे

      दृष्टि: सतां  दर्शनेऽस्तु   भवत्तनूनाम्   ।। १०/१०/३८

42.  वनं   वृन्दावनं नाम   पशव्यं    नवकाननम्    

गोपगोपीगवां   सेव्यं  पुण्याद्रितृण वीरूधम्  ।। १०/११/२८

43.  भ्रातस्तिष्ठ   तले तले  विटपि नाम  ग्रामेषु भिक्षामट् ,

स्वछन्दं  पिब   यामुनां  जल मलं  चिराणि कन्थां कुरू।

सम्मानं  कलयाति  घोर  गरलं  नीचापमानं    सुधा ,

श्री राधा मुरली धरौ भज सखे  वृन्दावनं  मात्यजं  ।। 

44.  बिभ्रद्  वेणुं जठरपटयो: श्रृंगवेत्रे   कक्षे

वामे पाणौ  मसृणकवलं  तत्फलान्यड़्गुलीषु। 

तिष्ठन्  मध्ये स्वपरिसुहृदो  हासयन् नर्मभि:स्वै:

स्वर्ग लोके  मिषति  बुभुजे यज्ञभुग् बालकेलि: ।। १०/ १३/११

45.  यावद् वत्सपवत्सकाल्पकवपुर्यावत् कराड़्घ्र्यादिकं

यावद् यष्टिविषाणवेणुदलशिग् यावद्विभूषाम्बरम् |

यावच्छीगुणाभिधाकृतिवयो यावद्विहारादिकं

सर्वं विष्णुमयमगिरोङ्गवदजः सर्वस्वरूपो बभौ ||

46.  नैते सुरेशा ऋषयो चैते 

     त्वमेव भासीश भिदाश्रयेपि |

सर्वं पृथक्त्वं निगमात् कथं वदे

      त्युक्तेन वृत्तं प्रभुणा बलोवैत् ||

47.  नौमीड्य तेभ्रवपुषे तडिदम्बराय

गुञ्जावतंसपरिपिच्छलसन्मुखाय |

वनियस्रजे कवलवेत्रविषाण वेणु

लक्ष्मश्रिये मृदुपदे पशुपाङ्गजाय ||

48.  तत्तेनुकम्पां सुसमीक्षमाणो

     भुञ्जान एवात्मकृतं विपाकम् |

हद्वाग्वपुर्भिर्विदधन्नमस्ते

     जीवेत यो मुक्तिपदे दायभाक् ||

49.  अहो भाग्यमहो भाग्यं नन्दगोपव्रजौकसाम् |

यन्मित्रं परमानन्दं पूर्णं ब्रम्हसनातनम् ||

50.  गोपालाजिर कर्दमे बिहरसे विप्राद्ध्वरे लज्जसे

ब्रूसे गोधन हुंकृते स्तुति सतै र्मौनंविधत्सेसतां |

दास्यं गोकुल पुंश्चलीसुपुरुषेस्वाम्यं नदान्तात्मसु

ज्ञातं क्रष्णतवार्घिं पकंज युगं प्रेमैकलभ्यं परमं ||

51.  न्याय्यो हि दण्डः कृतकिल्बिषेस्मिं

           स्तवावतारः      खलनिग्रहाय |

रिपोः सुतानामपि तुल्यदृष्टे 

            र्धत्से दमं फलमेवानुशंसन् ||

52.  वयं खलाः सहोत्पत्या तामसा दीर्घमन्यवाः |

स्वभावो दुस्त्यजो नाथ लोकानां यदसद्गृहः ||

53.  निशि तम घन खद्यूत विराजा

जनु दम्भिन कर मिला समाजा |

दादुर धुनि चहुं दिशा सोहाई

वेद पणहिं जनु बटु समुदाई

छुद्र नदी भरि चली तोराई 

जस थोरेहुं धन खल उतराई |

बूंद अघात सहहिं गिरी कैसे 

खल के बचन सन्त सह जैसे |

54.  सरिता सर निर्मल चल सोहा |

सन्त हृदय जस गत मद मोहा ||

55.  सरदा तप निसि शशि अप हरयी |

सन्त दरस जिमि पातक टरयी ||

56.  इत्थं शरत्स्वच्छजलं पद्माकर सुगन्धिना |

न्यविशद वायुना वातं सगोगोपालकोच्युतः ||

57.  बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं

विभ्रद वासः कनककपिशं वैजयन्तीं मालाम् |

रन्ध्रान वेणोरधर सुधया पूरयन् गोपवृन्दै

र्वन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद गीतकीर्तिः ||

58.  चम्पा वर्णौ राधिका भ्रमर श्याम को दास |

मातृ भाव हिम जानिके भ्रमर आवे पास ||

59.  तुलसी कुन्द मन्दार पारिजात सरोरुहैः |

पञ्चभिः ग्रथिता मालावनमालाप्रकीर्तितः ||

60.  अक्षण्वतां फलमिदं परं विदामः

सख्यः पशूननु विवेशयतोर्वषस्यैः |

वक्त्रं वृजेश सुतयोरनुवेणु जुष्टं

यैर्वा निपीमनुरक्तकटाक्ष मोक्षम् ||

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61.  हेमन्ते प्रथमे मासि नन्दव्रजकुमारिकाः |

चेरुर्हविष्यं भुञ्जानाः कात्यायन्यर्चनव्रतम् ||

62.  आप्लुत्याम्भसि कालिन्द्या जलान्ते चोगितेरुणे |

कृत्वा प्रतिकृतिं देवीमानुर्चुर्नृप सैकतीम् ||

63.  कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरी |

नन्दगोप सुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः ||

64.  श्याम सुन्दर ते दास्यः करवाम तवोदितम् |

देहि वासांसि धर्मज्ञ नो चेद राज्ञे ब्रुवामहे ||

65.  स्नानं दानं तथा होमं शयनं गमनं भुजं |

विना वस्त्रं कुर्वीत कुर्वन्तत्दोषकृद्भवेत ||

66.  संकल्पो विदितः साध्व्यो भवतीनां मदर्चनम् |

मयानुमोदितः योसौ सत्यो भवितुमर्हति ||

67.  मय्या वेशितधियां कामः कामाय कल्पते |

भर्जिता क्वथिना धाना प्रायो बीजाय नेष्यते ||

68.  मैवं विभोर्हति भवान् गदितुं नृशंसं

सत्यं कुरुष्व निगमं तव पादमूलम् |

प्राप्ता वयं तुलसिदाम पदावसृष्टं

केशैर्निवोढुमतिलङ्घ्य समस्तबन्धून ||

69.  धिग् जन्मनस्त्रिवृद्विद्यां धिग्व्रतंधिगबहुयज्ञताम |

धिक्कुलं क्रियादाक्ष्यं विमुखा ये त्वधोक्षजे ||

70.  पर्जन्यो भगवानिन्द्रो मेघास्तस्यात्ममूर्तयः |

तेभिवर्षन्ति भूतानां प्रीणनं जीवनं पयः ||10,24,8

71.  कर्मणा जीयते जन्तुः कर्मणैव विलीयते |

सुखं दःखं भयं क्षेमं कर्मणैवाभिपद्यते ||10,24,23

72.  कछु माखन को बल बढ़ो कछु गोपिन करी सहाय |

श्रीराधा जी की कृपा से मैनो गोवर्धन लियो उठाय ||

73.  सात कोश को गिरिवर सात वरष को श्याम |

सात दिवस कर पे धरयौ परो गिरिधारी नाम ||

74.  गिरित्वयाति धृष्टेन नाकृतो मे मनोरथः |

तस्मात त्वं तिल मात्रं हि नित्यं छयतां व्रजौ ||

75.  क्व सप्तहायनो बालः क्व महाद्रिविधारणम् |

ततो नो जायते शक्ङा व्रजनाथ तवात्मजे ||

76.  एकादश्यां निराहारः समभ्यर्च जनार्दम् |

स्नातुं नन्दस्तु कालिन्द्या द्वादश्यां जलमाविशत् ||

77.  अद्य मे निभृतो देहोद्यैवार्थोधिगतः प्रभो |

त्वत्पाद भाजो भगवन्नवापुः पारमध्वनः ||

78.  पिता पुत्र परपाल ये दशौ

     माता यशोदा सुतं प्रयाति |

गावश्च नैवाग्रत एव यान्ति

     कथं वसामोत्र विकुण्ठलोके ||

79.  ब्रम्हादि जय सरूढ दर्प कन्दर्प दर्पहा |

जयति श्रीपति र्गोपी रास मण्डल मण्डनः ||

80.  भगवानपिता रात्रिः शरदोत्फुल्लमल्लिकाः |

वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे योगमायामुपाश्रितः ||

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81.  स्वागतं वो महाभागाः प्रियं किं करवाणि वः |

व्रजस्यानामयं कच्चिद् ब्रूतागमनकारणम् ||

82.  भर्तुः शुश्रूषणं स्त्रीणां परो धर्मो ह्यमायया |

तद्वन्धूनां कल्याणः प्रजानांचानुपोषणम् ||भा• 10.29.24

83.  दुःशीलो दुर्भगो वृद्धो जडोरोग्यधनोपि वा |

पतिःस्त्रीभिर्नहातव्योलोकेप्यसुभिरपातकी ||भा• 10.29.25

84.  श्रवणाद् दर्शनाद् ध्यानान्मयि भावोनुकीर्तनात् |

तथा सन्निकर्षेण प्रतियात ततो गृहान् ||

85.  मैवं विभोर्हति भवान गदितुं नृशंसं

     सन्त्यज्य सर्वविषयांस्तव पादमूलम् |

भक्ता भजस्व दुरवग्रह मा त्यजास्मान्

     देवो यथादिपुरुषो भजते मुमुक्षुन  ||

86.  अनयाराधितो नूनं भगवान हरिरीश्वरः |

यन्नो विहाय गोविन्दः प्रीतो यामनयद रहः ||

87.  हा नाथ रमण प्रेष्ठ क्वासि क्वासि महाभुज |

दास्यास्ते कृपणाया मे सखे दर्शय सन्निधिम् ||

88.  जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः 

     श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि |

 दयित दृश्यतां दिक्षु तावका

    स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ||

89.   शरदुदाशये साधुजातसत् 

     सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा |

 सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका 

     वरद निघ्नतो नेह किं वधः ||

90.   विषजलाप्ययाद् व्यालराक्षसाद् 

    वर्षमारुताद् वैद्युतानलात् |

 वृषमयात्मजाद् विश्वतो भयाद् 

    ऋषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ||

91.    खलु गोपीकानन्दनो भवान् 

     अखिलदेहिनां अन्तरात्मदृक् |

 विखनसार्थितो विश्वगुप्तये 

     सख उदेयिवान् सात्वतां कुले ||

92.  तासामाविरभूच्क्षौरिः स्मयमानमुखाम्बुजः |

पीताम्बरः धरः स्त्रग्वी साक्षान्मन्मथमन्मथः 

93.  भजतोनुभजन्त्येक एक एतद्विपर्ययम् |

नोभयांश्च भजन्त्येक एकन्नोब्रूहि साधुभोः ||

94.  भजतोपि वै केचिद् भजन्त्यभजतः कुतः |

आत्मारामा ह्याप्तकामा अकृतज्ञता गुरूद्रुहः ||

95.  रेमे रमेशो व्रजसुन्दरीभि

    र्यथार्भकः स्वप्रतिबिम्ब विभ्रमः |

96.  धर्मव्यतिक्रमो दृष्ट ईश्वराणां साहसम् |

तेजीयसां दोषाय वन्हेः सर्वभुजो यथा ||

97.  विक्रीडितं व्रजवधूरभिरिदं विष्णोः 

     श्रद्धान्वितोनुश्रृणुयादथ वर्णयेद यः |

भक्तिं परां भगवति प्रतिलभ्य कामं

      हद्रोगमाश्वपहिनोत्यचिरेण धीरः ||

98.  एकदा देवयात्रायां गोपाली जातकौतुकाः |

अनोभिरनडुद्युक्तैः प्रययुस्तेम्बिकावनम् ||

99.  अहं विद्याधरः कश्चित सुदर्शन इति श्रुतः |

श्रिया स्वरूपसम्पत्त्या विमानेनाचर दिशः ||

100.                      मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा |

परम अनुग्रह मैं माना ||

भागवत पुराण दशम स्कंध उपयोगी श्लोक 

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101.                      वामबाहुकृतवामकपोलोवल्गितभ्रुरधरार्पितवेणुम्|

कोमलाङ्गुलिभिराश्रितमार्गंगोप्यईरयतियत्रमुकुन्दः||

102.                      व्योमयानवविताः सह सिद्धै

          र्विस्मितास्तदुपधार्य सलज्जाः |

काममार्गण समर्पित चित्ताः

             कश्मलं ययुरपस्मृतनीव्यः ||

103.                      यशोदायाः सुतां कन्यां देवक्याः कृष्णमेव |

रामं रोहणीपुत्रं वसुदेवेन विभ्यता ||

104.                      सिद्ध्यसिद्ध्योः समं कुर्याद् दैवंहिफलसाधनम् |

105.                      किं मयाचरितं भद्रं किं तप्तं परमं तपः |

किं वाथाप्यर्हते दत्तं यद् द्रक्ष्याम्यद्य केशवम् ||

106.                      अहो विधातास्तव क्वचिद् दया

          संयोज्य मैत्र्या प्रणयेन देहिनः |

तांश्चाकृतार्थान वियुनङ्क्ष्यपार्थकं

          विक्रीडितं तेर्भकचेष्टितं यथा ||

107.                      यावदालक्ष्यतेकेतुर्यावदरेणु रथस्य |

अनुप्रस्थापितात्मानो लेख्यानीवोपलक्षिताः ||

108.                      नतोस्म्यहं त्वाखिलहेतुहेतुं

            नारायणं पूरुषमाद्यमव्ययम् |

यन्नाभिजातादरविन्दकोशाद्

            ब्रह्माविरासीद् यत एष लोकः ||

109.                      अरी बहू भई बावरी लाज आवै तोय |

मुख खोल बाहर खडी नाम धरें सब कोय ||

110.                      कछुक दोष नहिं सास जी नाम ना धरिहैं कोय |

नन्दनन्दन को छांडिके कौन निरखिहैं मोय ||

111.                      दास्यस्म्यहं सुन्दर कंससम्मता

        त्रिवक्रनामा ह्यनुलेप कर्मणि |

मद्भावितं भोजपतेरतिप्रियं

         विना युवां कोन्यतमस्तदर्हति ||

112.                      मुकुन्दस्पर्शनात् सद्यो बभूव प्रमदोत्तमा |

113.                      जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरतितिन देखी तैसी |

114.                      मल्लानामशनिर्नृणां नरवरः स्त्रीणांस्मरो मूर्तिमान 

गोपानांस्वजनोसतांक्षितिभुजांशास्तास्वपित्रोशिशुः|

मृत्युर्भोजपतेर्विराडविदुषांतत्वंपरंयोगिनां

वृष्णीनांपरदेवतेतिविदितोरङ्गंगतःसाग्रजः ||

115.                      बालो किशोरस्त्वं बलश्च बलिनां वरः |

लीलयेभो हतो येन सहस्त्रद्विपसत्त्वभृत् ||

116.                      यस्तयोरात्मजः कल्प आत्मना धनेन |

वृत्तिं दद्यात्त प्रेत्य स्वमांसं खादयन्ति हि ||

117.                      गुरूपुत्रमिहानीतं निजकर्मनिबन्धनम् |

आनयस्व महाराज मच्छासनपुरस्कृतः ||

118.                      वृष्णीनां प्रवरो मन्त्री कृष्णस्य दयितः सखा |

शिष्यो वृहष्पतिः साक्षादुद्धवो बुद्धिसत्तमः ||

119.                      ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् |

120.                      ता मन्मनस्का मत्प्राणा मदर्थे त्यक्तदैहिकाः |

भागवत पुराण दशम स्कंध उपयोगी श्लोक 

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121.                      चले मथुरा से जब कुछ,दूर वृंदावन निकट आया

वहीं से प्रेम ने अपना अनोखा रंग दिखलाया |

उलझ कर वस्त्र में जब कांटे लगे उद्धव को समझाने,

तुम्हारा ज्ञान पर्दा फाड़ देंगे वह प्रेम दीवाने |

क्योंकि प्रेम है जगत में सार और कोई सार नहीं ||

122.                      अपि स्मरति नः कृष्णो मातरं सुह्रदः सखीन् |

गोपान् व्रजं चात्मनाथं गावो वृन्दावनं गिरिम् ||

123.                      जिन नैनन नन्दलाल लखे उन नैनन से अब देखिय काहो |

वैरिन वो अंखिया जल जाये जो सांवरो छोड़ निहारत गोरो ||

124.                      युवां श्लाघ्यतमौ नूनं देहिनामिह मानद |

नारायणे खिलगुरौ यत् कृतामतिरीदृशी ||

125.                      माता पिता तस्य भार्या सुतादयः |

नात्मीयो परश्चापि देहो जन्म एव ||

126.                      उद्धवस्य रथं दृष्ट्वा क्रूरं रामा ससंकिरे |

दुग्धेन दग्ध जिह्वस्तु तक्रं पिबति फूत कृतः ||

127.                      मधुप कितवबन्धो मा स्पृशाङ्घ्रिं सपत्न्याः 

कुचविलुलितमालाकुङ्कुमश्मश्रुभिर्नः |

वहतु मधुपतिस्तन्मानिनीनां प्रसादं

यदुसदसि विडम्ब्यं यस्य दूतस्त्वमीदृक् ||

128.                      मृगयुरिव कपीन्द्रं विव्यधे लुब्धधर्मा

स्त्रियमकृत विरूपां स्त्रीजितः कामयानाम् |

बलिमपि बलिमत्त्वावेष्टयद् ध्वाङ्क्षवद्य

स्तदलमसितसख्यैर्दुस्त्यजस्तत्कथार्थः ||

129.                      सुना जब प्रेम का अद्वैत तो उद्धव की खुली आंखें

पड़ी थी ज्ञान मद की धूल जिनमें वह धुली आंखें|

हुआ रोमांच तन में बिंदु आंखों से निकल आया 

गिरे श्री राधिका पग पर कहा गुरु मंत्र यह पाया||

है प्रेम जगत में सार और कोई सार नहीं ||

130.                      अहोयूयंस्मपूर्णार्था भवत्योलोकपूजिताः |

वासुदेवे भगवति यासामित्यर्पितं मनः ||

131.                      आसामहो चरणरेणुजुषां महं स्यां

वृन्दावने किमपि गुल्मलतौषधीनाम् |

या दुस्त्यजं स्वजनमार्यपथं हित्वा 

भेजेर्मुकुन्दपदवीं श्रुतिभिर्विमृग्याम् ||

132.                      वनिदे नन्दव्रजस्त्रीणां पादरेणुमभीक्ष्णशः |

यासां हरिकथोद्गीतं पुनाति भुवनत्रयम् |

133.                      अद्येश नो वसतयः खलु भूरिभागा

यः सर्वदेवपितृभूतनृदेव मूर्तिः |

यत्पादशौचसलिलं त्रिजगत् पुनाति

त्वं जगद्गुरुरधोक्षज याः प्रविष्टः ||

134.                      अस्तिः प्राप्तिश्च कंसस्य महिष्यौ भरतर्षभ |

मृते भर्तरि दुःखार्तेः ईयतुः स्म पितुर्गृहान् ||

135.                      जन्मकर्माविधानानि सन्ति मेङ्ग सहस्त्रशः |

शक्यन्तेनुसंख्यातुमनन्तत्वान्मयापि हि ||

136.                      भगवान भीष्मकसुतां रुक्मिणीं रुचिराननाम् |

राक्षसेन विधानेन उपयेम इति श्रुतम् ||

137.                      श्रुत्वा गुणान् भुवनसुन्दर श्रृण्वतां ते

     निर्विश्य कर्णविवरैर्हरतोङ्गतापम् |

रूपं दृशां दृशिमतामखिलार्थलाभं

     त्वय्यच्युताविशति चित्तमपत्रपं मे ||

138.                      अन्तः पुरान्तरचरीमनिहत्य बन्धूं

       स्त्वामुद्वहे कथमिति प्रवदाम्युपायम् |

पूर्वेद्युरस्ति महती कुलदेवियात्रा

        यस्यां बहिर्नववधू गिरिजामुप्रेयात ||

139.                      नमस्ये त्वाम्बिकेभीक्ष्णं स्वसन्तानयुतां शिवाम् |

भूयात पतिर्मे भगवान कृष्णस्तदनुमोदताम् ||

140.                      कामस्तु वासुदेवांशो दग्धः प्राग् रुद्रमन्युना |

देहोपपत्रये भूयस्तमेव प्रत्यपद्यत ||

भागवत पुराण दशम स्कंध उपयोगी श्लोक 

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141.                      जब यदुवंश कृष्ण अवतारा होहिं हरण महामहिभारा |

कृष्ण तनय होहिं पति तोरा बचन अन्यथा होहिं मोरा |

142.                      मातृभाव मतिक्रम्य वर्तसे कामिनी यथा ||

143.                      आसीत सत्राजितः सूर्यो भक्तस्य परमः सखा |

प्रीतस्तस्मै मणिं प्रादात् सूर्यस्तुष्टः स्यमन्तकम् ||

144.                      अहं देवस्य सवितुर्दुहिता पतिमिच्छती |

विष्णुं वरेण्यं वरदं तपः परममास्थिता ||

145.                      बाणः पुत्रशतज्येष्ठो बलेरासीन्महात्मनः ||

146.                      नमामि त्वानन्तशक्तिंपरेशं सर्वात्मानं केवलं ज्ञाप्तिमात्रम् |

विश्वोत्पत्तिस्थानसंरोधहेतुं यत्तद् ब्रम्ह ब्रम्हलिङ्गं प्रशान्तम् ||

147.                      नृगो नाम नरेन्द्रोहमिक्ष्वाकुतनयः प्रभो |

दानिष्वाख्यायमानेषु यदि ते कर्णमस्पृशम् ||

148.                      नाहं हालाहलं मन्ये विषं यस्य प्रतिक्रिया |

ब्रम्हस्वं हि विषं प्रोक्तं नास्य प्रतिविधिर्भुवि ||

149.                      स्वदत्तां परदत्तां वा ब्रम्हवृत्तिं हरेच्च यः |

षष्टिवर्षसहस्त्राणि विष्ठायां जायते कृमिः ||

150.                      राम रामाखिलाधार प्रभावं विदाम ते |

मूढानां नः कुबुद्धीनां क्षन्तुमर्हस्यतिक्रमम् ||

151.                      युद्धं नो देहि राजेन्द्र द्वन्दशो यदि मन्यसे |

152.                      कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने |

प्रणतः क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमोनमः ||

153.                      कृष्णस्यासीत् सखा कश्चिद् ब्राम्हणो ब्रम्हवित्तमः|

विरक्त इन्द्रियार्थेषु प्रशान्तात्मा जितेन्द्रियः ||

154.                      अयं हि परमो लाभ उत्तमश्लोक दर्शनम् |

155.                       एक मास दो पक्ष में दो एकादशी होय |

 पर मेरे घर गोपाल जू नित एकादशी होय ||

156.                      सीस पगा झगा तन पे प्रभु जानि के आहि बसे केहि ग्रामा

धोती फटी सि लटी दुपटी और पांव उपान की नाहीं सामा

द्वार खड़ो द्विज दुर्बल एक रहो चकिसो वसुधा अपिरामा

      पूंछत दीनदयाल को धाम |बतावतो अपनो नाम सुदामा |

157.                      ऐसे बेहाल बिवाइन सो पग कंटक जाल गडे़ पुनि जोये,

 हाय महा दुख पायो सखा तुम आए इत कित दिन खोये |

देखि सुदामा की दीन दशा करुणा करके करुणानिधि रोए,

 पानी पंरात को हाथ छुयो नहिं नैनन के जल सो पग धोए ||

158.                      बरसे कमल नयन बादल सो धुल गए पैर नयन के जल सो |

159.                      होनी थी तो हो गई अब ना ऐसी होय |

 अब तेरे घर भाभी जू नित्य द्वादशी होय ||

160.                      क्वाहं दरिद्रः पापीयान् क्व कृष्णः श्रीनिकेतनः |

ब्रम्हबन्धुरितिस्माहं बाहुभ्यां परिरम्भितः ||

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161.                      अथैकदा द्वारवत्यां वसतो रामकृष्णयोः|

सूर्योपरागः सुमहानासीत् कल्पक्षये यथा ||

162.                      अहं हि सर्वभूतानामादिरन्तोन्तरं बहिः |

भौतिकानां यथा खं वार्भूर्वायुर्ज्योतिरङ्गनाः ||

163.                      ह्यम्मयानि तीर्थानि देवा मृच्छिलामयाः |

ते पुनत्युरुकालेन दर्शनादेव साधवः ||

164.                      कर्मणा कर्मनिर्हारो यथा स्यान्नस्तदुच्यताम् |

165.                      कर्मणा कर्म निर्हार एष साधु निरूपितः |

यच्छ्रद्धया यजेद विष्णुं सर्वयज्ञेश्वरं मखैः ||

166.                      अहं यूयमसावार्य इमे द्वारकौकसः |

167.                      तिस्त्रः कोट्यः सहस्त्राणामष्टाशीतिशतानि |

आसन् यदुकुलाचार्यः कुमाराणामिति श्रुतम् ||

168.                      जनयिष्यति वो मन्दा मुसलं कुलनाशनम् |             

 

 

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