prerak kahaniya in hindi
(लालच की कोई सीमा नहीं)
एक लालची व्यक्ति घोड़े पर सवार होकर मन ही मन अनेक प्रकार की कल्पनाएँ करता एक जंगल से गुजर रहा था। अचानक उसने एक आवाज सुनी। आवाज एक यक्ष की थी।
वह कह रहा था-"घुड़सवार! तुम अभी-अभी जिस वृक्ष के नीचे से गुजरे हो, उसकी जड़ के पास सात कलश रखे हैं। उनमें छ: कलश सोने से भरे हुए हैं और सातवाँ आधा सोने से भरा है और आधा खाली है।
यदि तुम सातवें कलश को सोने से भर दोगे तो अन्य सभी सोने के कलशों के स्वामी बन जाओगे।"घुड़सवार ने सुना तो उसका मन प्रसन्नता से भर गया। लौटकर पेड़ के पास गया और सातों कलशों को लेकर अपने घर को चल दिया।
घर पहुँचकर उसने अपनी पत्नी से कहा-“इन कलशों में सोना भरा हुआ है। छ: कलश सोने से पूरे भरे हैं और सातवाँ आधा खाली है।
prerak kahaniya in hindi
यदि हम किसी प्रकार सातवें घड़े को सोना भरकर पूरा कर दें तो इन सातों कलशों के सोने पर हमारा अधिकार हो जायेगा। अतः तुम्हारे पास जितना सोना है, उससे सातवें कलश को पूरा भर दो।"
पति-पत्नी दोनों मिलकर घर में रखे सारे सोने से उस कलश को भरने लगे। पर वह कलश सोने से भरा नहीं।
घुड़सवार निराश होकर उन सातों कलशों को साथ लेकर उसी वृक्ष के पास पहुँच गया। वहाँ पहुँचकर उसने यक्ष को पुकारकर कहा-“महात्मन्! मैंने अपने घर का सारा सोना इस कलश में डाल दिया है, फिर भी यह भरा नहीं, जबकि सोना एक कलश भर जाने से भी अधिक था।"
घुड़सवार की बात सुनकर यक्ष हँसने और मुस्कराने लगा। फिर बोला-“अरे मूर्ख! यदि इन कलशों का सोना प्राप्त कर लेना इतना आसान होता तो ये कलश यहाँ कैसे रह सकते थे? तू इन कलशों को खोलकर देख, इनमें सोना नहीं, पीतल भरी है।
prerak kahaniya in hindi
जिस कलश को तू भरना चाह रहा था, वह लालच का कलश है। लालच का कलश कभी नहीं भरता।" यक्ष की बात सुनकर घुड़सवार शर्मिन्दा हो गया।
जब एक हुआ तो दस होते, दस हुए तो सौ की इच्छा है। सौ पाकर भी यह लोभ हुआ, अब सहन हों तो अच्छा है। होते-होते, धीरे-धीरे, राजा के पद पर पहुंचा है। तब भी संतोष नहीं होता, ऐसी यह डायन तृष्णा है।।