prerak hindi kahani
(स्वच्छ सत्संग)
किसी गाँव का एक व्यापारी शहर में व्यापार करता था। एक बार उस गाँव में एक संत के प्रवचन का आयोजन किया गया ताकि आस-पास की जनता सत्संग का लाभ उठा सके।
व्यापारी को शहर में जब पता चला कि उसके गाँव में एक प्रसिद्ध संत के प्रवचन का आयोजन किया गया है तो उसकी भी इच्छा हुई कि गाँव जाकर उनके प्रवचन सुनने का लाभ उठाया जाये और संत के प्रवचन वाले दिन से एक दिन पहले संध्या समय अपने गाँव आ गया।
जब प्रवचन का समय हो गया तो सेठजी बड़ी श्रद्धा और उत्सुकता के साथ प्रवचन-स्थल की ओर चल पड़े। उनके कदम तेजी से उठते जा रहे थे। तभी सहसा उनकी चप्पल टूट गई।
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थोड़ी दूर पर छतरी की छाया के नीचे बैठा मोची अपना काम कर रहा था। व्यापारी उसके पास पहुँचा और अपनी चप्पल ठीक करने के लिए उसे दे दी। मोची ने यह समझकर कि ये महाशय सत्संग में कथा सुनने जा रहे हैं, और काम छोड़कर उनकी चप्पल अत्यन्त शीघ्र ही ठीक कर दी और व्यापारी को सौंप दी।
मोची के सहयोग से व्यापारी अत्यन्त प्रसन्न हुआ और मोची को एक रुपया निकालकर देने लगा पर मोची ने रुपया लेने से इनकार कर दिया।
व्यापारी ने कारण पूछा तो मोची सहज स्वभाव से बोला-“आप कथा सुनने के लिए शहर से गाँव आये हैं। आप धन्य हैं। मैं निर्धन होने के कारण कथा सुनने नहीं जा सकता क्योंकि मजदूरी करके परिवार के पोषण के लिए आवश्यक वस्तुयें जुटानी हैं।
अत: काम छोड़ नहीं सकता। पर आप जैसे गृहस्थ की चप्पल में दो टाँके लगाकर मैं ऐसा अनुभव कर रहा हूँ कि मैं कथा के श्रोताओं में शामिल हूँ।"
मोची के श्रद्धा और अपनत्व से भरे कथन को सुनकर व्यापारी ने अनुभव किया कि मैंने सत्संग की सच्ची कथा का सुख प्राप्त कर लिया है।
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय। और न को शीतल करे, आपहु शीतल होय॥