prerak hindi story
(मन हरिहा गाय की तरह है)
गाँव के बाहर की ओर एक व्यक्ति की पशुशाला थी। उसके बहुत से पशु पशुशाला से बाहर बैठे या खड़े जुगाली करते रहते थे। उन पशुओं में एक गाय भी थी।
पशुशाला के सामने निकट ही एक किसान के खेते थे। उनमें फसल के पौधे लहलहा रहे थे। गाय रोज उन खेतों में जाती और फसल को तहस-नहस कर देती। परिणामस्वरूप दोनों किसानों में झगड़ा होता। पशुशाला का मालिक अनेक प्रयत्न करता, बड़ी चौकसी रखता पर गाय उन खेतों में चली ही जाती।
एक दिन उसने अपने एक साथी से इस बात का जिक्र किया और पूछा कि क्या उपाय किया जाये कि गाय खेत में जाने से रुक सके। साथी ने उपाय बताया-गाय के गले में रस्सी बाँध दो।
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मालिक ने गाय के गले में रस्सी बाँध दी। पर गाय खेत में चली गई। यह बात साथी को बताई तो उसने उपाय बताया-गाय के पैरों में रस्सी बाँध दो।
गाय के पैरों में रस्सी बाँध दी गई। सोचा, अब यह रुक जायेगी, पर कहाँ? वह तो फिर खेत में जा पहुँची। साथी ने तीसरा उपाय बताया-गाय की पूँछ में रस्सी बाँध दो, तब वह रुक जायेगी।
गाय की पूंछ में रस्सी बाँध दी गई। पर पतनाला वहीं गिरा।
गाय फिर खेत में पहुंच गई। सब परेशान! अब साथी ने अन्तिम उपाय बताया-गाय के गले में रस्सी बाँधकर रस्से को जमीन में गड़े खूटे से बाँध दो। ऐसा ही किया गया। गाय ने बहुतेरा यत्न किया पर खेत में नहीं जा सकी।
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यही स्थिति मन की है। वह रोके नहीं रुकता। कितना ही अंकुश लगाओ, कोई असर नहीं होता। - भजन, पूजन, कीर्तन कुछ भी करो, मन अन्यत्र ही छलाँगें लगाता रहता है।
पर जब उसे भगवान के चरणों से बाँध दिया जाता है, अन्यत्र उसका गमेन नहीं हो सकता। वह इधर-उधर के लोभ, मोह, मेरा, तेरा, सब ओर से रुक जाता है।
मानव की प्रभु-चरणों में समर्पित हो जाने के अतिरिक्त अन्य कोई गति नहीं है।