prerak laghu katha in hindi
मकोड़े का मकोड़ा
सभी जानते हैं कि राजस्थान का अधिकांश भाग मरुस्थल (रेगिस्तान) है। गर्मियों में रेगिस्तान का रेत कितना तपता है, कोई भुक्तभोगी ही जान सकता है।
तो.... भयंकर गर्मी का समय। चिलचिलाती दोपहरी। रेगिस्तान के तपते रेत में तीन पैर का एक मकोड़ा तड़प रहा था, छटपटा रहा था। कोई उपाय न था जिससे उसे राहत मिलती।
संयोगवश उसी रास्ते से पार्वती और शिवशंकर कहीं जा रहे थे। पार्वती की दृष्टि छटपटाते मकोड़े पर पड़ी। शिवजी ने भी उसे देखा था। उनको तो कुछ अजूबा नहीं लगा, पर पार्वती का हृदय उसकी छटपटाहट को देखकर उद्वेलित हो उठा।
prerak laghu katha in hindi
उन्होंने भोले शंकर से प्रार्थना की-“नाथ! देखिए तो, यह मकोड़ा कैसे छटपटा रहा है। कृपया इस पर अपनी कृपा बिखेर दीजिए।"
शंकर बोले-“पार्वती! सब अपने किये का फल भोगते हैं, तुम किस-किस पर कृपा करती फिरोगी?"
शंकर के उत्तर से पार्वती आहत हो गई। उन्होंने फिर हठपूर्वक कहा-“प्रभो! आपको सब शंकर कहकर पुकारते हैं, कृपया इसकी रक्षा कीजिए।"
पार्वती ने हठ किया तो शिवजी ने उसे मानव बना दिया। मानव बनने पर वह उस तपती बालू से निकलकर सुरक्षित स्थान पर आ गया। पार्वती शिवजी से बोली-“आपने इसे मानव बना दिया, बहुत अच्छा किया। कृपा करके इसके भोजन की व्यवस्था तो कर दीजिए।"
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शिवजी ने भोजन की व्यवस्था कर दी। पार्वती के कहने पर भोजन के बाद वस्त्रों और रहने के लिए मकान की व्यवस्था भी कर दी। मनोरंजन के साधन भी जुटा दिये।
यह सब हो गया तो पार्वती ने शिवजी से पुन: कहा-“कृपया आप अपनी ओर से भी इसे इसकी इच्छानुसार वरदान दे दीजिए।"
शिवजी बोले-“तथास्तु।" उन्होंने मानव बने मकोड़े से कहा-“माँग, मुझसे तुझे क्या वरदान चाहिए!"
मकोड़ा पार्वती की सुन्दरता पर मुग्ध था, बोला-“भोलेनाथ! आप अपनी सुन्दर पत्नी को मुझे दे दीजिए।"
भगवान शिव बोले-“तुझे किसी वरदान की आवश्यकता नहीं है। अब मैं तुझे वही तीन पैर का मकोड़ा बनाये दे रहा हूँ।" यह कहने की देर थी कि मानव रूप त्यागकर वह मकोड़ा फिर तपते रेत में जाकर छटपटाने लगा। अवसर का अनुचित लाभ उठाना कष्टकारक होता है।