prerak laghu kahani (पर-हित सरिस नहीं कोई पूजा)

 prerak laghu kahani

prerak laghu kahani (पर-हित सरिस नहीं कोई पूजा)

(पर-हित सरिस नहीं कोई पूजा)

महिला संतों में आण्डाल एक प्रख्यात नाम है। वह जब प्रभु-प्रार्थना में लीन होती थी, उस समय की उनकी तन्मयता भी प्रसिद्ध है। एक बार वे - प्रार्थना में लीन थीं।


उस समय उनका ध्यान वहीं था। किसी और तरफ उनका ध्यान तनिक भी नहीं था। तभी कई लोग एक साथ उनकी कुटिया पर पहुँचे। आकर पहले तो उन्होंने 'संत माँ की जय' के नारे लगाये, फिर उनसे मदद की याचना करने लगे।


वे चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे-"माँ रक्षा करो! माँ रक्षा करो।" ___ आण्डाल के शिष्यों ने सोचा-इससे संत माँ की प्रार्थना में विघ्न पड़ेगा, अत: उन्होंने उन लोगों से कहा-“आप लोग चिल्ला-चिल्लाकर बोल रहे हैं। इससे माँ आण्डाल की पूजा में विघ्न पड़ेगा।"

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उधर इस हल्ले-गुल्ले के प्रभाव से आण्डाल की समाधि टूट गई। उनका ध्यान भंग हो गया। वे तुरन्त बाहर आईं और इस शोर-शराबे का कारण पूछा।


आये हुए गाँव के लोगों ने बताया-“गाँव के मुखिया बीमार हैं। उनकी हालत बहुत ही नाजुक है। उनकी रक्षा केवल आप ही कर सकती हैं। अन्य कोई विकल्प नहीं है।"


संत ने जब यह सुना तो तत्काल वे उन लोगों के साथ चल पड़ी बिना एक क्षण भी विचार किये। उनके शिष्यों को इस व्यवहार से बड़ा आश्चर्य हुआ।

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वे सोचने लगे कि ऐसी क्या बात है जो मुखिया के लिए आण्डाल ने अपनी पूजा अधूरी छोड़ दी और उन लोगों के साथ चली गईं। आज तक उन्होंने कभी भी अपनी पूजा अधूरी नहीं छोड़ी थी। आखिर इस मामले में वे इतनी गम्भीर कैसे बन गईं! _


संत के शिष्य यह भी जानते थे कि मुखिया अच्छी छवि का व्यक्ति नहीं था।


संत आण्डाल को मुखिया के लोगों के साथ गये तीन घंटे बीत गये। अचानक शिष्यों ने देखा कि संत आण्डाल गाँव वालों के साथ चली आ रही हैं और उनके साथ बीमार मुखिया चारपाई पर लेटा हुआ है।


आश्रम पर आते ही मुखिया की चारपाई एक वृक्ष के नीचे डाल दी गई। आण्डाल के निर्देशानुसार गाँव वाले लौट गये। कुटिया में प्रवेश करके आण्डाल कुछ औषधियाँ लाईं। अपने शिष्यों को निर्देश दिया कि इन्हें समय के अनुसार औषधि देते रहें।

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औषधि देने का समय और विधि भी उनको बता दी। इसके बाद वे पुनः आश्रम में प्रवेश कर गईं।

शिष्यों ने उनकी आज्ञा का पालन किया।


बाद में एक शिष्य ने संत से पूछा- “माँ! आज आपने अपनी आराधना को अधूरी छोड़कर मुखिया की सेवा की। यह बात समझ में नहीं आई।"


आण्डाल ने मुस्कराते हुए शांत भाव से बताया- "वत्स! ईश्वर हर जगह व्याप्त है। वह कण-कण में समाया हुआ है। उसका कोई एक रूप नहीं है। प्रत्येक अच्छा कर्म प्रभु की पूजा ही है। दुखी मनुष्य की सेवा सबसे बड़ी पूजा है।"

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