शिक्षाप्रद नैतिक कहानी
(क्रोध नरक की खान)
पाकिस्तान में एक प्रान्त का नाम है सिन्ध। सिन्ध में एक महान सन्त हो गये हैं। उनका नाम था-शाह अब्दुल लतीफ! उनकी सहनशीलता से बहुत-से लोग चिढ़ते थे और आकरण ही उनसे विरोध करते थे।
एक बार उन विरोधियों ने उनको क्रोध दिलाकर उनकी प्रतिष्ठा भंग करनी चाही। इसके लिए उन्होंने एक योजना बनाई। वे सब एक वेश्या के पास गये।
उसे लालच देते हुए उन्होंने कहा-“यदि तुम शाह को क्रोध दिला दोगी तो हम तुम्हें नकद पचास रुपये देंगे।"
वेश्या लालच में फंसकर राजी हो गई। उसने शाह साहब के पास जाकर अपने घर पर भोजन करने का निमन्त्रण दिया। शाह ने निमन्त्रण स्वीकार कर लिया।
शिक्षाप्रद नैतिक कहानी
वेश्या अपने घर आ गई। उसने मिट्टी का एक बड़ा मटका लिया। मटके में थोड़ा-सा ज्वार का आटा डाला। साथ ही दो-तीन सेर नमक और 20 सेर के लगभग पानी भर दिया।
फिर उसे चूल्हे पर चढ़ाकर चूल्हे में । आग जला दी। निश्चित समय पर शाह साहब भोजन करने आ पहुँचे। उनके आते ही वेश्या उन्हें गन्दी-गन्दी गालियाँ देने लगी।
पर शाह साहब तो सन्त थे, उन पर उन गालियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वेश्या ने उनके कपड़े फाड़ डाले और लकड़ी से उन्हें पीटने लगी। किन्तु शाह साहब को क्रोध नहीं आया।
तब जलती हुई राब का मटका चूल्हे पर से उठाया और उनके सिर पर दे मारा। मटका फूट गया। उसमें से निकली राब उनके शरीर पर फैल गई।
शिक्षाप्रद नैतिक कहानी
जहाँ-जहाँ राब गिरी थी, वहाँ-वहाँ की चमड़ी छिल गई और दीखने लग गया। पर सन्त अब भी शान्त बैठे रहे।
थोडी देर बाद पर गिरी हुई राब को उठा-उठाकर खाने लगे। वेण्या ने जब यह सब देखा तो उसकी आँख खुली। उसे अपने किये हुए आय पर पश्चाताप होने लगा।
सन्त को जलाने वाली स्वयं पछतावे की आग jaलने लगी। उसकी आँखों से पश्चाताप के आँसू बहने लगे।
अचानक शाह साहब के पैरों में गिर पड़ी। कहने लगी-“मैंने बड़ी गलती की जो आपके साथ इतना अभद्र व्यवहार किया। कृपा करके मुझे क्षमा करें। मुझे को मेरे इस कुकृत्य के फलस्वरूप नरक में भी जगह नहीं मिलेगी।"
शिक्षाप्रद नैतिक कहानी
शाह साहब ने सर्धि-स्वभाव ही उत्तर दिया-“इसमें क्षमा माँगने की बात कहाँ से आ गई? जो होना था, वह हो गया। बल्कि मुझे तो तुम्हारे इस कत्य से लाभ ही हुआ है।
जितनी मीठी राब आज मुझे खाने की मिली है, बैसी कभी मेरी मां ने भी मुझे नहीं खिलाई थी। तुम्हारी इस राब से मेरा पेट साफ हो जायेगा।
मैं तो भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि वह तुम्हारे दिल को भी वैसा ही साफ कर दे और तुम्हारा भला करे।"
शाह साहब के इस कथन का वेश्या पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उसने अपना सारा जीवन मानव-हित में लगा दिया और प्रभु की दीवानी हो गई।
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