शिक्षा देने वाली कहानी (अपना धर्म न छोड़ें)
शिक्षा देने वाली कहानी
(अपना धर्म न छोड़ें)
भारत में एक रियासत थी-ओरछा। वहाँ के राजा का नाम मधुकर शाह था। मधुकर शाह मुगल बादशाह अकबर के समकालीन थे।
अकबर के दरबार में वह हमेशा जाते-आते थे। वह अपने माथे पर लम्बा तिलक लगाते थे।
एक दिन बादशाह अकबर ने उनके माथे पर लगे उस लम्बे तिलक को देख लिया। अकबर को यह अच्छा नहीं लगा और घोषणा कर दी-“कोई| भी दरबार में लम्बा तिलक लगाकर न आया करे।"
यह आदेश सभी ने सुना पर बहुत से हिन्दू दरबारियों ने इस पर कोई टिप्पणी या विरोध प्रकट नहीं किया। लेकिन मधुकर शाह ने इसे अपने धार्मिक विचार पर आक्रमण के रूप में लिया।
शिक्षा देने वाली कहानी
उस समय तो वे चुप रहे, लेकिन अगले दिन पहले की अपेक्षा और अधिक लम्बा तिलक लगाकर दरबार में आये।
बादशाह ने वह तिलक देखा तो उसे समझते देर नहीं लगी कि मधुकर शाह ने यह लम्बा और गाढ़ा तिलक जान-बूझकर लगाया है।
उसकी भृकृटि तन गई। क्रोध प्रकट करते हुए ओरछा नरेश से कहा-“कल जो मैंने आदेश दिया था, वह आपने सुना नहीं था क्या! आप पहले से अधिक लम्बा, गाढ़ा और चमकदार तिलक लगाकर यहाँ आये हैं, इसका अर्थ हुआ कि आप मेरा आदेश मानने से इन्कार करते हैं।"
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मधुकर शाह ने यह सब सुना और विनम्र शब्दों में उत्तर दिया-“बादशाह सलामत! आप भली-भाँति जानते हैं कि मैं राज्य से पूरी तरह प्रेम करता हूँ और पूर्ण वफादारी से राज-धर्म का पालन करता हूँ।
मैं आपकी और राज्य की रक्षा के लिए अपने प्राण भी दे सकता हूँ। पर, मेरा अपना धर्म राजधर्म है। उसका पालन करना मेरा परम कर्तव्य है।
मस्तक पर तिलक लगाना मेरे धर्म का प्रमुख अंग है। उसे मैं कदापि नहीं त्याग सकता। इसके लिए चाहे कितना भी लम्बा और कठोर दण्ड भुगतना पड़े। मैं विवश हूँ।"
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