F लघु शिक्षाप्रद कहानियाँ (भजन बिनु बाबरे) - bhagwat kathanak
लघु शिक्षाप्रद कहानियाँ (भजन बिनु बाबरे)

bhagwat katha sikhe

लघु शिक्षाप्रद कहानियाँ (भजन बिनु बाबरे)

लघु शिक्षाप्रद कहानियाँ (भजन बिनु बाबरे)

 लघु शिक्षाप्रद कहानियाँ

लघु शिक्षाप्रद कहानियाँ (भजन बिनु बाबरे)

(भजन बिनु बाबरे)


एक बार सन्त कबीर ने एक किसान से पूछा- “तुम भगवान के भजन के लिए थोड़ा-बहुत समय निकाल लेते हो या नहीं?" किसान ने सहज भाव से उत्तर दिया-“नहीं निकाल पाता।


अभी मेरे बच्चे छोटे हैं। उनकी देखभाल और पालन-पोषण की जीविका के जुगाड़ से फुरसत नहीं मिल पाती। जब ये बच्चे जवान हो जायेंगे तब भगवान का भजन अवश्य करूँगा।"


कुछ वर्ष बीत जाने पर कबीरदास जी ने उस किसान से फिर पूछा-“अब तो तुम्हारे बच्चे बड़े हो गये होंगे, अत: भगवान का भजन-पूजन करने का समय मिल जाता होगा!"

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किसान बोला-“अभी इनका शादी-ब्याह करना है। इससे निपटकर ही समय निकाल पाऊँगा और तब भगवान का भजन करूँगा।" -


कुछ वर्ष और बीत गये। एक दिन कबीरदास जी ने किसान से फिर वही प्रश्न किया-तो किसान ने उत्तर में कहा-“अभी तो समय नहीं मिल पाता।


मेरी इच्छा है कि-पोते हो जायें और उनको लाड़ लड़ा लूँ। इसके बाद तो फिर भजन-पूजन ही करना है।"


पर कबीर तो कबीर थे। कुछ वर्ष बाद उन्होंने उस किसान से पुन: वही प्रश्न पूछ लिया-“अब तो पोतों से लाड़-दुलार का सुख भी तुम्हें मिल गया होगा, भजन-पूजन का समय निकाल पाते हो या नहीं?"

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किसान ने निराशा का भाव प्रकट करते हुए उत्तर दिया-"अभी कहाँ! पोते बड़े शरारती हैं। बहुत तंग करते हैं। हर समय उनका ध्यान रखना पड़ता है, अत: अभी भी भजन-पूजन का समय नहीं मिल पाता।"


फिर कई वर्ष बीत गये। किसान से मुलाकात नहीं हुई तो कबीरदास जी उसके घर गये। वहाँ जाकर पता चला कि किसान की मृत्यु हो चुकी है।


कबीर अन्तर्ज्ञानी थे। उन्होंने ध्यान किया तो उन्हें ज्ञात हुआ कि किसान के पास एक गाय थी। किसान उसे बहुत प्यार करता था।


किसान ने उस गाय के बछड़े के रूप में जन्म लिया। जब वह बड़ा हुआ तो उसे हल में खूब जोता गया, गाड़ी में बोझा खिंचवाया गया और जब उसकी ताकत कम होने लगी तो उसे कोल्हू में जोता गया।

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फिर जब वह किसी काम का नहीं रहा तो उस किसान के लड़कों ने उसे किसी कसाई को बेच दिया। कसाई ने उसका चमड़ा उतारकर बेचा और उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके माँस बेचकर धन कमाया।


चमड़े को नगाड़ा बजाने वालों ने नगाड़े पर कसकर मढ़ दिया और ठोक-पीटकर बजाने लायक बना दिया।


वे रोज उसे ठोकते पीटते और बजाते। किसान की यह दशा देखी तो कबीरदास के विचार फूट पड़े-

बैल बने हल में जुते, ले गाड़ी में दीन।

तेली के कोल्हू रहे, पुनि घेर कसाई लीना

माँस कटा बोटी बिकी चमड़न मढ़ी नमार।

कुछ कुकरम बाकी रहे जिस पर पड़ती मार॥

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