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dharmik katha kahani (ईमानदारी में बड़ी शक्ति है)

bhagwat katha sikhe

dharmik katha kahani (ईमानदारी में बड़ी शक्ति है)

dharmik katha kahani (ईमानदारी में बड़ी शक्ति है)

 dharmik katha kahani 

dharmik katha kahani (ईमानदारी में बड़ी शक्ति है)

(ईमानदारी में बड़ी शक्ति है) 

एक समय की बात है। राजस्थान में बड़ा भयंकर अकाल पड़ा। वर्षा के पूरे दिन निकल चुके थे, पर एक दिन भी वर्षा नहीं हुई। चारों ओर हाहाकार मच रहा था। लोग अन्न के दाने-दाने को तरस रहे थे। 


वर्षा न होने के कारण धरती सूखकर पत्थर हो गई थी। वहाँ के राजा का परेशानी के कारण बुरा हाल था। उसने वर्षा के देवता की कृपा प्राप्त करने के लिए तरह-तरह के यज्ञ और अनुष्ठान करवाये, बहुत-से दान भी दिये लेकिन वर्षा न होनी थी, सो न हुई।


एक दिन किसी ने राजा से कहा-“राजन्! इस नगर में एक व्यापारी रहता है। यदि वह चाहे तो वर्षा हो सकती है। राजा उस व्यापारी के पास गया और उससे कहा-“भइया! मैंने सुना है क यदि आप चाहें तो वर्षा हो सकती है। यदि ऐसा है तो राज्य की स्थिति को देखते हुए कोई ऐसा उपाय करिए जिससे वर्षा हो सके।"

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व्यापारी हाथ जोड़कर बोला-“महाराज! मैं ठहरा एक साधारण आदमी, भला, मेरी क्या ताकत कि मैं वर्षा करा सकूँ।" पर राजा उसकी चिरौरी करता रहा और जब वह नहीं माना तो अनशन पर बैठकर उसने कहा-“मैं यहाँ से तभी जाऊँगा, जब वर्षा हो जायेगी।" 


व्यापारी खामोश हो कुछ विचार करता रहा। फिर उसने अपना तराजू उठाया और आँगन में खड़ा हो गया। फिर आकाश की ओर अपना मुँह उठाकर कहने लगा-“हे वर्षा के देवता! आप साक्षी हैं कि मैंने अपने इसतराजू से कभी भी कम या अधिक नहीं तोला है।


सदा ही ईमानदारी का दामन पकड़े रहा हूँ। यदि मेरा कहना सत्य है और मेरा तराजू ईमानदारी से सौदा तोलता रहा है तो मेरी और इस तराजू की ईमानदारी की रक्षा कीजिए। हे देवराज इन्द्र! कृपा करके वर्षा कर दीजिए ताकि प्रजा अकाल की मार से उबर सके!"

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व्यापारी की प्रार्थना इन्द्रदेव ने कबूल कर ली और थोड़ी ही देर में बादल आकाश में मँडराने लगे और देखते ही देखते वर्षा प्रारम्भ हो गई। घनघोर वर्षा हुई। यह देखकर राजा चकित हो गया और प्रसन्न भी।


उसने व्यापारी से कहा- “सेठ! इस वर्षा के लिए मैंने अनेकों अनुष्ठान कराये पर वर्षा के देवता इन्द्र प्रसन्न नहीं हुए और वर्षा नहीं हुई। पर तुम्हारी प्रार्थना में कौन-सा जादू था कि केवल दो वाक्य बोल देने पर देखते ही देखते धरती वर्षा से स्नान करने लगी, उसकी प्यास बुझ गई।"


व्यापारी ने शान्त भाव से राजा को उत्तर दिया- “राजन्! मेरे अन्दर वर्षा कराने की कोई शक्ति या जादू नहीं है। यह सब इस तराजू की ईमानदारी की शक्ति का ही करिश्मा है।


ईमानदारी के आगे भगवान भी झुक जाते हैं। वास्तव में आज का मनुष्य सत्कर्म करना छोड़कर स्वार्थ की दलदल में फंस गया है। उसने ईमानदारी से नाता तोड़ दिया है और बेईमानी से नाता जोड़ लिया है। इसी कारण वह अनेक प्रकार के दुख और कष्टों की पीड़ा झेल रहा है।


केवल ईमानदारी ही उसे इस पीड़ा से मुक्ति दिला सकती है।" - व्यापारी के इस कथन से राजा अत्यधिक प्रभावित हुआ और उसकी प्रशंसा करते हुए राजमहल को लौट गया।

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