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(वरदान की वापसी)
एक बार एक आदमी को अचानक भगवान के दर्शन हो गए। भगवान ने आदमी को अपना परिचय दिया और कोई वरदान मांगने को कहा।
आदमी सोचने लगा कि उसने तो कभी भगवान की भजन-बन्दगी नहीं की, फिर यह चमत्कार कैसा? अन्तर्यामी भगवान ने आदमी की मानसिक दुविधा को जान लिया और कहा, “मैं जानता हूँ कि तूने इस जन्म में मेरी कोई भक्ति नहीं की, पर मेरे दर्श. तुम को तेरे पिछले सुकर्मों के फलस्वरूप सम्भव हुए हैं।"
आदमी सोचने लगा कि अगर मैंने पिछले जन्म में इतने अच्छे कर्म किए हैं तो फिर इस जन्म में मुझको इतनी सख्त सज़ा क्यों मिली है?
उसका हृदय उसके जवान बेटे की समय से पूर्व हुई मौत की वजह से बुरी तरह जख्मी था। वह सोच रहा था कि भगवान से कौन सा वरदान मांगा जाए।
पैसे की उसके पास कमी न थी। अच्छा घर-बार, उच्च कोटि का व्यापार, कोठी, कार सब कुछ तो था उसके पास। सिर्फ उसके बेटे की असमय हुई मृत्यु ने उसकी जिन्दगी को, उसके हृदय को, उसकी आत्मा को झकझोर दिया था।
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उसने मन में सोचा कि वह भगवान से अपने बेटे को वापिस मांग ले। भगवान ने उसकी मानसिक स्थिति को भांपते हुए कहा-“देख, जो तेरे मन में वरदान माँगने का प्रश्न उठ रहा है उसे पूरा करना संभव नहीं, क्योंकि बीत चुके को वर्तमान में स्थूल रूप में प्रकट नहीं किया जा सकता। भविष्य के बारे में कुछ माँग ले।"
आदमी फिर सोचने लगा और उसकी सोच उसके बेटे की अगवा होने से लेकर मौत तक के घटनाचक्र तक एकदम घूम गई और एक टीस उसके दिल से उठी जिससे उसके चेहरे के हाव-भाव बदलने लगे। गुस्से से उसकी मुट्ठियाँ भिंच गई और चेहरा तन गया।
उसके बेटे को अगवा करने में जिस व्यक्ति का हाथ था, वह आजकल जमानत पर रिहा होकर बाहर आजाद घूम रहा था। उस व्यक्ति ने उसके बेटे को किसी गैंग से अगवा करा लिया था और उसकी वापसी के लिए एक करोड़ की फिरौती माँगी थी।
इधर इसने पुलिस को सूचित कर दिया था और अपहरणकर्ताओं पर पुलिस का दबाव बनने के कारण उन्होंने उसके बेटे का कत्ल करके उसे जंगल में फेंक दिया था। आदमी की सोच अपने बेटे के अपहरण करने वालों पर आकर रुक गई थी।
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उसने भगवान की ओर मुखातिब होते हुए कहा- “हे भगवान! अगर तेरे दर्शन मेरे पूर्व जन्म में किए अच्छे कर्मों से हुए हैं तो मैं इस जन्म में भी तेरी भक्ति करना चाहता हूँ।" भगवान उसकी यह बात सुनकर प्रसन्न हो गया और फिर वरदान माँगने की बात दोहराई।
“पर तेरी भक्ति मैं तभी कर सकता हूँ जब मेरा मन शान्त हो। और मेरा मन तभी शान्त होगा जब मेरे बेटे का कातिल जिन्दा न रहे।" वह भगवान के आगे गिडगिड़ाकर बोला-“अगर तू सचमुच भगवान है तो मेरे बेटे के कातिल को मौत दे दे समय से पूर्व।"
भगवान उसके इस वरदान से कशमकश में पड़ गया। वह सोचने लगा इसका यह वर मैं कैसे पूरा कर सकता हूँ। अगर मैं इस रास्ते पर चल पड़ा तो दुनिया में अन्धेर हो जाएगा, सबका विश्वास मुझसे उठ जाएगा। इसलिए मैं ऐसा नहीं कर सकता।
पर अगर मैं उसका यह वरदान पूरा नहीं करता तो अपने वादे से मुकरने वाली बात होगी। वादाखिलाफी तो भगवान हरगिज़ नहीं कर सकता और अगर मैंने इसका माँगा वरदान इसको न दिया तो यह खुद इस शैतानी रास्ते पर चल पड़ेगा।
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इसलिए इसको यह वर देना ही ठीक रहेगा। भगवान ने कहा-“ठीक है, तेरा वरदान एक महीने के अन्दर-अन्दर पूरा हो जाएगा पर तुझे भी अपना वचन याद रखना पड़ेगा अर्थात् मेरी भजन-बन्दगी करनी होगी।"
भगवान ने उसको यह वर इसलिए दिया कि हो सकता है भगवान की भक्ति के रास्ते पर चलते-चलते उसको यह ज्ञान ही हो जाए कि इस राह पर चलने वाले कभी किसी का बुरा नहीं सोच सकते और इस तरह वह खुद ही अपना वर वापिस लेने को कह दे।
वह आदमी खुशी-खुशी भगवान की भक्ति करने लग गया। इस मार्ग पर चलते-चलते उसकी विचारधारा बदलने लगी। वह सोचता, अगर कोई बुरा है तो मुझे बुरा काम करके उस जैसा नहीं बनना चाहिए। अच्छा हो, अगर भगवान मुझे पुनः मिल जाए और अपना वरदान वापिस ले ले।
एक दिन वह सड़क के किनारे इसी सोच में डूबा सैर कर रहा था कि अचानक दो कारों की आपस में टक्कर हो गई। वह उधर की तरफ दौड़ा। बहुत से लोग इकट्ठे हो गए। जब उसने आगे होकर देखा तो उसकी चीख निकल गई।
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उसके बेटे का कातिल एक्सीडेण्ट में बुरी तरह जख्मी हो गया था और उसके देखते ही देखते दम तोड़ दिया। वह आदमी अपने आपको दोषी और बेबस समझता हुआ चीखें मारने लगा और ऊँची-ऊँची आवाज में भगवान को पुकारने लगा।
कुछ दिन बाद अचानक भगवान उस आदमी को मिला। आदमी ने भगवान को पहचान लिया और गिड़गिड़ाने लगा-“भगवान! मुझे माफ कर दो।"
भगवान ने माफी का कारण पूछा तो उसने बताया कि वह आदमी मर चुका है पर मैं उसकी मौत का दोषी नहीं। तुम्हारी भक्ति के बाद मुझे समझ आ गई कि उस मार्ग पर चलने वाले किसी का बुरा नहीं सोचते।
इसलिए मैंने अपना वर वापिस लेने के लिए कई बार तुम्हें पुकारा पर तुमने आने में इतनी देर. कर दी।"
भगवान उस व्यक्ति की मौत के बारे में सुनकर अचम्भे में पड़ गया। उसने दुनिया वाले इंसानों के हिसाब-किताब वाली अपनी बही खोली और देखा कि उसकी मौत तो अभी बीस साल बाद होनी थी।
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उसने अपनी बही के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और उन टुकड़ों की वर्षा इन दुनियावी इंसानों पर कर दी। भगवान ने उस आदमी को संबोधित करते हुए कहा-“अब इंसान ने अपनी होनी को, जन्म और मौत की शक्ति को अपने हाथों में कर लिया है।
इसलिए अब इस बही की आवश्यकता नहीं। कहीं वह विज्ञान की मदद से भ्रूण हत्या करके जीवन ले रहा है ,कहीं दुर्घटनाओं के समय से पूर्व लोगों को खत्म कर रहा है।
कहीं ब्लास्ट, कहीं असाध्य रोगों की चिकित्सा में जीवन-दान दे रहा है। असम्भव को सम्भव बना रही दुनिया में अब मेरा कोई काम नहीं। मैं उस दुनिया से बहुत दूर जा रहा हूँ।
मैं तभी वापिस आऊँगा जब यह दुनिया के लोग मेरे असली अर्थ और मार्ग को समझेंगे और जानेंगे और इन्सानियत के रास्ते पर चलकर दूसरों को उचित जीवन जीने की दिशा देंगे।