motivational kahani in hindi
(अपराधी कौन?)
दो मित्र थे। उनमें से एक का नाम धर्मबुद्धि था और दूसरे का नाम पापबुद्धि। दोनों की बुद्धि उनके नाम के अनुसार ही थी। गाँव में धन कमाने का कोई साधन नहीं था।
अत: दोनों ने सलाह की और अपने-अपने माँ-बापों से अनुमति लेकर धन कमाने के लिए दूर देश में जाकर मेहनत-मशक्कत से धन कमाने लगे और बहुत-सा धन इकट्ठा कर लिया।
एक दिन दोनों ने सलाह बनाई कि हमारे पास बहुत-सा धन जमा हो गया है, इसलिए अब अपने घर लौट चलना चाहिए। यह सलाह करके दोनों वापस चल पड़े।
जब अपने गाँव की सीमा पर पहुँचे तो पापबुद्धि ने कहा-“मित्र! सारा धन घर ले जाना उचित नहीं है। धन को देखते ही रिश्तेदार और यार-दोस्त धन माँगने लगेंगे।
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अत: हम दोनों ही थोड़ा-थोड़ा धन लेकर चलते हैं और बचा हुआ धन यहाँ गड्ढा खोदकर उसमें दबा देते हैं। जरूरत पड़ने पर आकर निकाल लेंगे।"
धर्मबुद्धि ने बात मान ली और थोड़ा-थोड़ा धन लेकर बचा हुआ धन एक गड्ढा खोदकर उसमें दबा दिया और अपने-अपने घर चले गये।
कुछ ही दिनों बाद पापबुद्धि के मन में पाप आ गया और एक दिन जाकर गड्ढे से सारा धन निकालकर गड्ढे को मिट्टी से उसी प्रकार ढक दिया जैसे धर्मबुद्धि के सामने ढका था।
अगले दिन उसने धर्मबुद्धि के पास जाकर कहा-“मित्र! मेरे घर में अचानक धन की आवश्यकता पड़ गई है, अतः चलकर दबे हुए धन को ले आते हैं।"
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____धर्मबुद्धि को तो कई आपत्ति थी ही नहीं, इसलिए उसने पापबुद्धि की बात मान ली। दोनों जंगल में गये और मिट्टी हटाकर गड्ढा खोदा पर गड्ढे में दबे धन को तो पापबुद्धि पहले ही निकाल ले गया था। उसने चालाक बनते हुए कहा-“धर्मबुद्धि! तुम तो बड़े पापी हो।
मुझे बिना बताये यहाँ से सारा धन निकाल ले गये। ...पर तुम्हारी चालाकी चलने नहीं दूंगा। चलो, घर चलकर उस धन में से आधा मुझे दो।"
धर्मबुद्धि तो निर्दोष था। पापबुद्धि की बात सुनकर उसे क्रोध आ गया। वह बोला-“नहीं, यह झूठ है। मैंने न कभी जीवन में झूठ बोला है, न चोरी की है।"
दोनों का झगड़ा बढ़ गया। बात न्याय-पंचायत में पहुँची। ठीक फैसले के लिए गवाह की आवश्यकता पड़ी तो उस वृक्ष को ही गवाही के लिए चुना गया जिसकी जड़ में धन गाड़ा गया था।
तय हुआ कि सुबह होते ही सब उस पेड़ के पास चलेंगे और उसकी गवाही से इनका फैसला कर दिया जायेगा कि चोर कौन है।
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पापबुद्धि के मन में तो पाप था ही। उसने अपने घर जाकर अपने पिता को सारी बात बताकर समझा दिया कि तुम उस वृक्ष की जड़ के गड्ढे के पास पेड़ को खोखल में छिपकर बैठ जाना और जब वृक्ष से पूछा जाय कि इन दोनों में चोर कौन है तब झट से बोल देना कि धर्मबुद्धि ही चोर है।
सुबह हुई तो पंचायत के लोगों के साथ ही धर्मबुद्धि और पापबुद्धि भी वहाँ पहुँच गये। पापबुद्धि का पिता पहले ही जाकर वृक्ष की खोखल में छिप गया था।
जाते ही पंचों ने वृक्ष की ओर देखते हुए कहा-“वृक्ष देवता! इन दोनों में कौन चोर है? पापबुद्धि या धर्मबुद्धि?"
वृक्ष की खोखल में बैठे हुए पापबुद्धि के पिता ने तुरन्त ही कहा-“धर्मबुद्धि चोर है।"
वृक्ष की गवाही से धर्मबुद्धि यद्यपि चोर साबित तो हुआ था परन्तु किसी को भी इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था। धर्मबुद्धि भी हैरान था कि आखिर यह मामला क्या है?
तभी धर्मबुद्धि की बुद्धि काम कर गई। उसने सूखी लकड़ियाँ इकट्ठी की और उस वृक्ष के चारों ओर फैलाकर उनमें आग लगा दी। जैसे ही आग लगी, पापबुद्धि का पिता झुलसता हुआ वृक्ष के खोखल से निकलकर बाहर आ गया। वह आग में जल रहा था और पीड़ा के कारण चीखें मार रहा था।
पंचायत के लोग यह दृश्य देखकर हैरान रह गये। वह कुछ भी नहीं समझ पा रहे थे। पर अन्त में पापबुद्धि के पिता ने अपने पुत्र का रचा हुआ षड्यन्त्र सबको बता दिया और तभी उसके प्राण निकल गये।
पंचों ने दण्डस्वरूप पापबुद्धि को उसी वृक्ष पर लटका दिया और कहा-“अब तुम अपने किये की सज़ा भुगतो।"