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motivational kahani in hindi (साधना का मार्ग)

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(साधना का मार्ग) 

एक युवक को आत्मसाक्षात्कार का मार्ग जानने की इच्छा हुई। इस इच्छा की पूर्ति के लिए वह एक महात्मा जी के पास पहुँचा। उसने महात्मा जी से कहा- “मैं आत्मसाक्षात्कार करना चाहता हूँ, कृपया कोई मार्ग बताइए।"


महात्मा ने कहा-“वत्स! आत्मसाक्षात्कार का मार्ग बहुत ही कठिन है। उस मार्ग पर चलने के लिए साधक को अनेक कठिनाइयों से दो-चार होना पड़ता है।"


“आप मार्ग बताइए, मैं प्रत्येक कठिनाई को सहने के लिए तैयार हूँ।" युवक ने उत्साहित होकर कहा।


महात्मा जी ने कहा-“एकान्त स्थान में बैठकर एक वर्ष तक गायत्री मंत्र का जप करो। इस अवधि में न तो किसी से बात करना और न ही किसी से किसी प्रकार का मतलब रखना। एक वर्ष के बाद आकर मुझसे मिलना।"

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जब एक वर्ष बीत गया तो महात्मा ने आश्रम की सफाई करने वाली सेविका से कहा-“आज मेरा शिष्य आने वाला है। तुम उसके आने पर झाड़ से खूब धूल उड़ाना।"


युवक आया तो उस सेविका ने झाड़ लगाते हुए उसे धूल से अटा दिया। युवक को क्रोध आ गया और वह उस सेविका को मारने दौड़ा। सेविका भाग गई।


जब युवक नहा-धोकर महात्मा जी की सेवा में उपस्थित हुआ तो उन्होंने कहा-“तुम तो साँप की तरह काटते हो। जाओ, एक वर्ष तक साधना और करो।"


युवक को महात्मा जी की बात पर भी क्रोध आया परन्तु उसे अपना काम निकालना था। उनके निर्देश का पालन करने के अतिरिक्त अन्य कोई रास्ता नहीं था, अत: वह चला गया।

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जब वह वर्ष भी बीत गया तो महात्मा जी ने अपनी सेविका से कहा-“आज वह शिष्य फिर आयेगा। उसके आते ही तुम अपनी झाड़ उसके शरीर से सटा देना।


युवक के आने पर सेविका ने अपना झाड़ उससे सटा दिया। इस बार युवक ने उसे बहुत-सी गालियाँ दीं। इसके बाद स्नान करने चला गया।


स्नान करके जब वह महात्मा जी की सेवा में उपस्थित हुआ तो उन्होंने कहा-“अब तुम साँप की तरह काटते तो नहीं, पर फुनफुनाते तो हो। जाओ, एक वर्ष और साधना करो।" युवक चला गया।


जब तीसरा वर्ष बीत गया तो महात्मा जी ने सफाई करने वाली सेविका से कहा-“वही युवक आज फिर आयेगा। उसके आने पर तुम अपनी कूड़े की भरी टोकरी उसके सिर पर डाल देना।"

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युवक आया तो सफाई करने वाली ने कूड़े से भरी टोकरी उसके सिर पर डाल दी। इस बार उसे क्रोध नहीं आया। उसने हाथ जोड़कर सफाई करने वाली से कहा-“माता! तुम तीन वर्ष से मेरे दुर्गुणों को निकालने का प्रयास कर रही हो, तुम महान हो, मैं तुम्हारे आगे नतमस्तक हूँ।


तुम्हारे इस उपकार को मैं कभी नहीं भूलूँगा। कृपया इसी प्रकार मेरा उद्धार करने का प्रयास करती रहना।"


युवक स्नान करने चला गया। स्नान करके जब महात्मा जी के पास आया तो महात्मा जी मुस्करा दिये। उन्होंने कहा-“अब तुम्हारे अन्दर आत्म साक्षात्कार की योग्यता उत्पन्न हो गई है।, जाओ, तुम्हारा कल्याण हो।"


युवक ने श्रद्धासहित महात्मा जी को प्रणाम किया और कृत्कृत्य होकर चला गया।

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