dharmik katha story (ज़रा सोचकर चलो!)

bhagwat katha sikhe

dharmik katha story (ज़रा सोचकर चलो!)

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dharmik katha story (ज़रा सोचकर चलो!)

(ज़रा सोचकर चलो!) 

किसी गाँव में एक किसान रहता था। उसकी पत्नी का देहान्त हो चुका था। वह अपने पुत्र और पुत्रवधू के साथ रहता था। उसका एक पोता भी था। 


पत्नी के मर जाने के बाद किसान ने अपनी कृषि भूमि एवं जमा-पूँजी पत्र को सौंपकर घर का जिम्मेदार पुत्र को ही बना दिया। उसके इस बर्ताव से पुत्र और पुत्रवधू बड़े प्रसन्न हुए और उसकी भरपूर सेवा और सम्मान करने लगे।


कुछ दिन तक तो सेवा-सम्मान का क्रम चलता रहा पर फिर उसमें अन्तर आने लगा। पति-पत्नी दोनों की ओर से बूढ़े किसान की अवहेलना होने लगी। 


पर पोते का बाबा से अधिक लगाव था। वह अपनी पढ़ाई-लिखाई एवं विद्यालय से मिला गृह-कार्य बाबा के पास बैठकर ही करता था अतः बोबा किसी काम की कहते या कुछ माँगते तो उनकी आज्ञा का पालन कर देता था।

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एक समय ऐसा आया, जब किसान को उठने-बैठने में भी परेशानी होने लगी। ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाने पर उसकी चारपाई बहू-बेटे ने एक छोटी-सी कोठरी में डाल दी। 


उसके खाने-पीने की सुधि भी वे नहीं लेते थे। बिना भोजन के उसे दो-दो दिन निकल जाते। खाने-पीने के लिए उसके पास मिट्टी का एक बर्तन रख दिया ताकि माँजना-धोना न पड़े। यह सब देखकर पोते को बड़ा दुख होता था। 


एक दिन किसान की मृत्यु हो गई। समाज को दिखाने के लिए बेटे ने बड़ी धूमधाम से शवयात्रा निकालकर उसका दाह-संस्कार कर दिया। बाप के सम्मान में बहुत बड़े भोज का आयोजन किया।

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 भोज में अनेक प्रकार के बहुमूल्य खाद्य पदार्थ सम्मिलित किये। जब सारा कार्य सम्पन्न हो गया तो एक दिन बेटा उस छोटी-सी कोठरी की सफाई करने लगा। उसने अपने पिता की सभी पुरानी चीजें फेंकनी शुरू कर दीं।


 इनमें ओढ़ने-बिछाने के कपड़े, स्टूल-कुर्सी शामिल थे। । इस क्रम में जब वह मिट्टी के बर्तनों को लेकर फेकने चला तो उसके पुत्र ने कहा-"पिताजी! इन बर्तनों को क्यों फेंक रहे हैं। ये तो काम में आते रहेंगे।"


बाप बोला-“बेटा! अब इनकी जरूरत नहीं है। तुम्हारे दादाजी तो चले गए। अब ये किस काम के!"


बेटे ने आँखों में आँसू भरे उत्तर दिया-“इन्हें मत फेकिए! अभी तो ये चीजें बहुत काम आयेंगी।" पिता बोला-“अब किस काम आयेंगी?"


बेटे ने कहा- “पिताजी! एक दिन आप भी तो बूढ़े होंगे। जब आप बूढ़े हो जायेंगे तो ये चीजें ,उसी प्रकार काम आयेंगी जिस प्रकार दादाजी के काम आती थीं।


उस समय मुझे मिट्टी के बर्तन लाने के लिए अन्यत्र नहीं जाना पड़ेगा। इन्हीं को काम में ले आया जायेगा। आपको भोजन-पानी देने के लिए भी तो ऐसे ही बर्तनों की आवश्यकता पड़ेगी।"


बेटे की बात सुनकर बाप सन्न हो गया। वह सोचने लगा-"काश! मुझ ऐसा समझ पहले आ गई होती तो बाप को बेटे का जोरदार तमाचा न खाना पड़ता।"

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