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bhagwat katha sikhe

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श्रीराम देशिक प्रशिक्षण केंद्र एक धार्मिक शिक्षा संस्थान है जो भागवत कथा, रामायण कथा, शिव महापुराण कथा, देवी भागवत कथा, कर्मकांड, और मंत्रों सहित विभिन्न पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
dharmik short story in hindi (दीपक, तेल और बाती)

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 dharmik short story in hindi

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(दीपक, तेल और बाती)

सत्संग चल रहा था। एक सन्त प्रवचन कर रहे थे। वे दीपक, तेल और बाती के माध्यम से प्रभु-चिंतन की बात समझा रहे थे।


 उन्होंने जो कुछ कहा, वह सार रूप में प्रस्तुत हैकोई भी पूजा-अर्चना का अवसर हो, हम दीपक जलाते हैं। किसी भी त्योहार के अवसर पर दीपक की उपस्थिति अनिवार्य होती है। दीपक जलाये बिना कोई भी पूजा पूरी नहीं होती। बिना दीपक जलाये, अँधेरा दूर नहीं होता।


क्या है दीपक? मिट्टी का एक छोटा सा बर्तन जिसकी आकृति चोड़े मुँह के प्याले जैसी होती है। उसमें घी या तेल डाला जाता है। 


फिर उसमें एक चीज और डाली जाती है जो रूई से बनाई जाती है। उसे बाती कहते हैं। बाती को अच्छी तरह घी में डुबाते हैं और उसके सिरे पर आग लगा दी जाती है। बाती के जलते ही प्रकाश (उजाला) हो जाता है।

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आखिर इस प्रकाश का मूल बिन्दु क्या है? यह कहाँ से आता है? यह प्रकाश बाती के जलने से होता है। बाती तेल या घी से जल रही है। जैसे ही घी या तेल समाप्त हो जायेगा तो बाती का क्या होगा? राख बन जायेगी। घी या तेल ही उसे राख बनने से बचा रहा था।


ठीक इसी प्रकार की बाती है हमारा यह शरीर। इसे राख बनने से श्वास रूपी घी या तेल बचाये हुए है। श्वास खत्म होते ही शरीर रूपी बाती का प्रकाश समाप्त हो जायेगा।


श्वास रूपी घी या तेल कहाँ से आता है? यह ईश्वर की कृपा से शरीर रूपी बाती में आता है। इसी का सबसे बड़ा आशीर्वाद है। ईश्वर ने आशीर्वाद दिया है कि तुम जीवित रहो।


पर जब तक हम जीवित रहते हैं, हम जान ही नहीं पाते कि हम क्यों जीवित हैं। हमारे अन्दर ऐसा क्या है जो हमें जीवित रखे हुए है।

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यही एक ऐसा ज्ञान है जिसकी अनुभूति मनुष्य कई बार अन्त समय में कर पाता है। जब इस परम सत्य या परम आनन्द का ज्ञान हो जाता है तो मोह के सारे बन्धन टूट जाते हैं।


इस स्थिति में उससे कुछ भी करने को कहा जाये, वह सुनेगा ही नहीं और जब सुनेगा ही नहीं तो करेगा कैसे? क्योंकि उसे परम आनन्द का ज्ञान प्राप्त जो हुआ होता है।


अतः मुख्य प्रश्न यह है कि हम अपने जीवन में सबसे अधिक चिन्तन किस बात का करते हैं? यदि इस श्वास का चिंतन नहीं है, इस श्वास के अन्दर छिपी हुई वस्तु का हम चिन्तन नहीं करते हैं, परम आनन्द , परम सत्य का चिन्तन नहीं है तो अन्त तक भी हमें ज्ञान नहीं हो पायेगा कि हमें कौन जीवित रखे हुए है।


अत: एक आदत का अभ्यास डालें कि हमारा ध्यान एक ऐसी वस्तु की ओर लगा रहे जिससे कि हमारे अन्दर आनन्द ही आनन्द बसे। हमारे हृदय की प्यास बुझे।


शंकाओं की दुनिया से दूर रहकर मन को इस प्रकार एकाग्र करें कि हम अपने अन्दर की वस्तु का, अपने प्रभु का सदा स्मरण करें।


हमेशा याद रखें। यह एक उपाय है जिसे हम अपने जीवन में कर सकते हैं। जीवन में यह कर पाना असंभव नहीं है।


चाहे हम कुछ भी करें, कहीं भी जायें, कैसी भी समस्या हमारे सामने आये, पर हमारा ध्यान बँधा रहे। कहाँ बँधा रहे? जहाँ परमानंद विराजमान है, जहाँ शंकायें नहीं हैं।

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