Dharmik Stories in Hindi (साँप नहीं रस्सी का टुकड़ा)

 Dharmik Stories in Hindi

Dharmik Stories in Hindi (साँप नहीं रस्सी का टुकड़ा)

(साँप नहीं रस्सी का टुकड़ा) 

गंगा के किनारे एक संत का आश्रम था। वहाँ संत अपने शिष्यों को विद्याध्ययन कराते थे। एक दिन जब रात का समय था, उन्होंने अपने एक शिष्य को एक पस्तक देकर कहा-“यह पुस्तक अंदर जाकर मेरे तख्त पर रख आओ।"


शिष्य पस्तक को लिये वापस लौट आया। उसके शरीर के सब अंग काप रहे थे और वह अत्यन्त भयभीत था। गुरुजी से बोला-“गुरुदेव! तख्त के पास साँप है।"


संत ने कहा-“तम पुनः जाओ। ॐ नमः शिवाय का जाप करते हुए जाना, साँप भाग जायेगा।"

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शिष्य मंत्र को जपता हुआ पुनः अन्दर गया लेकिन वह काला साँप वहीं बैठा दिखाई पड़ रहा था। वह डरकर फिर लौट आया और गुरुजी से बता। दिया कि साँप अभी भी वहीं है।


गुरुदेव ने कहा-“वत्स! तुम हाथ में दीपक लेकर जाओ। वह दीपक के प्रकाश से डरकर भाग जाएगा।"


शिष्य दीपक लेकर अन्दर पहुंचा तो दीपक के प्रकाश में देखा कि जिसे वह साँप समझ रहा था, वह एक रस्सी का टुकड़ा था। पहले वही अंधकार के कारण साँप दिखाई दे रहा था।

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संत जी को जब उसने यह बात बताई तो वे मुस्करा उठे। फिर बोले-"वत्स! यह संसार बड़ा गहन भ्रम जाल है।


उस भ्रम जाल को ज्ञान के प्रकाश द्वारा ही काटा जा सकता है। अज्ञान के कारण हमारे मन में अनेक भ्रम जाल बस जाते हैं।


वे ज्ञान रूपी दीपक का आश्रय ले लेने से कट जाते हैं, यह बात सदा याद रखनी चाहिए।"

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