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dharmik story hindi /महर्षि दधीचि का त्याग

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महर्षि दधीचि का त्याग

वृत्र नाम का एक अत्याचारी राक्षस था। वह देवताओं को तो तंग करता ही था, उसका आतंक तीनों लोकों में छाया हुआ था। उसके आतंक के आगे सब ओर त्राहि-त्राहि की पुकार मची रहती थी।


तब उस राक्षस ने देवताओं की हत्या कर राक्षसों का राज्य स्थापित करने का विचार किया। योजना भी बना ली। उसने अत्याचारों का ऐसा नाच नाचा कि ऋषि-मुनि, साधु-संत पहाड़ों और गुफाओं में जाकर छिपने लगे।


उसके अत्याचारों से डरकर देवराज इन्द्र अपने साथियों के साथ शिव की सेवा में उपस्थित हुए। वहाँ उन्होंने कहा- “प्रभो! आपसे बल प्राप्त करके वृत्रासुर का अत्याचार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।

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वह ऋषि-मुनियों की हत्या पर उतर आया है। उसे यदि नहीं रोका गया तो पृथ्वी पर ज्ञानी-ध्यानियों एवं साधु-संतों का नामोनिशान नहीं रहेगा।"


शिवजी बोले- “देवराज! मैं अपने किसी भी भक्त को दुख या संकट में देखकर दुखी होता हूँ, पर वृत्रासुर के अत्याचारों को मैं भी नहीं रोक सकता। उसकी मृत्यु किसी ऐसे ऋषि की हड्डियों से बने वज्र से होगी जो ब्रह्म विद्या में पारंगत हो।


यह वज्र महर्षि दधीचि की हड्डियों से ही बन सकता है। इसलिए आप सब ऋषि दधीचि के पास जाओ। वहाँ जाकर उनसे प्रार्थना करो कि वृत्रासुर का अन्त केवल आपकी हड्डियों से बने वज्र से ही हो सकता है। अतः अपनी हड्डियों का दान कर दें।

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देवराज बोले-“प्रभो! भला कोई अपना शरीर कैसे त्याग सकता है? यह बहुत ही कठिन कार्य है।"


भगवान शंकर ने कहा-“अन्य कोई उपाय नहीं हो सकता है।" विवश हो देवराज अपने साथियों के साथ ब्रह्मर्षि दधीचि के आश्रम पर पहँचे। उन्होंने महर्षि से कहा-“मुनिवर! हमें बचाइए! हमारी रक्षा कीजिए।"


ऋषि बोले-“देवेन्द्र! संकोच त्यागकर कहो, मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?"


इन्द्र ने बताया-“ब्रह्मर्षे! वृत्रासुर के अत्याचारों से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि हो रही है। हमें भगवान शिव ने बताया है कि उसका वध केवल आपकी हड्डियों के बने वज्र से ही हो सकता है।


यदि आप अपने प्राण त्यागकर अपना शरीर हमें दे दें तो आपकी हड्डियों से वज्र तैयार करके उस पापी राक्षस को मारा जा सकता है।"


ऋषि ने बिना विलम्ब किये कहा-“देवराज! यदि मेरे शरीर से आप सबकी रक्षा और पापी राक्षस का अंत हो सकता है तो मैं सहर्ष अपना शरीर त्यागने को तैयार हूँ।" और जन-हित के लिए उन्होंने समाधि द्वारा तुरन्त अपने प्राण त्याग दिये।

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